- फ़िल्टर करें :
- अर्थव्यवस्था
- विज्ञान-प्रौद्योगिकी
- पर्यावरण
- आंतरिक सुरक्षा
- आपदा प्रबंधन
-
प्रश्न :
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के पिछड़ेपन हेतु भारत की भौगोलिक तथा जलवायवीय दशाएँ किसी सीमा तक जिम्मेदार है। यह पश्चिमी देशों से किस प्रकार भिन्नता रखती है?
18 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• भौगोलिक तथा जलवायवीय दशाओं का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से संबंध
• पश्चिमी देशों से भिन्नता
• निष्कर्ष
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से तात्पर्य ऐसी आर्थिक गतिविधियों से है जिसके अंतर्गत प्राथमिक कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण उनका मूल्यवर्द्धन किया जाता है। उदाहरणत: डेयरी उत्पाद, फल तथा सब्जियों का प्रसंस्करण, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ तथा पेय पदार्थ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अंतर्गत आते हैं।
भारत की भौगोलिक तथा जलवायवीय स्थितियों के अनुसार प्रत्येक मौसम में किसान विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ उत्पादित करते हैं जिससे भोजन की आदतों में बदलाव रहता है। जलवायु विविधता के कारण मौसमी सब्जियों का उत्पादन उष्ण के साथ-साथ ठंडे प्रदेशों में भी होने लगा है। पश्चिमी देशों के विपरीत भारत में लगभग 99 प्रतिशत ताजा कृषि उत्पादों का उपभोग किया जाता है। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों में सर्दियों का मौसम काफी लंबे समय तक रहता है जिसके कारण इन्हें अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये गहन प्रसंस्करण उद्योग की आवश्यकता है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग वैसी गहनता हासिल नहीं कर पाया है, जैसी स्थिति हमें पश्चिमी देशों में देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त भारत में खाद्य प्रसंस्करण हेतु तकनीकी दक्षता तथा अवसंरचना का अभाव भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के सीमित विकास की सबसे बड़ी बाधा है।
किसी भी देश की जलवायु वहाँ के मौसम के विभिन्न तत्त्वों तथा जलवायु कारकों की पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया का सम्मिलित परिणाम होती है। इस प्रकार भारत एवं पश्चिमी देशों की भौगोलिक स्थिति एवं उनके उच्चावच में असमानता के कारण जलवायु में भिन्नता पाई जाती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास को प्रभावित करने में उस स्थान की भौगोलिक तथा जलवायवीय स्थितियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि भारत के भौगोलिक तथा जलवायवीय कारक पश्चिमी देशों की तुलना में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अपेक्षाकृत कम अनुकूल है, किंतु भारत में भी तकनीकी तथा अवसंरचनात्मक विकास द्वारा इस क्षेत्र में रोजगार सृजन, खाद्यान्न सुरक्षा व किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना तथा शीत शृंखला, मूल्यवृद्धि तथा परिरक्षण अवसंरचना स्कीम इस क्षेत्र के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print