‘गार्बाचोव का स्थानीय लोकतंत्रीकरण रूस के विघटन का वास्तविक कारण था।’ टिप्पणी कीजिये।
16 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • गार्बाचोव की नीतियाँ • विघटन के कारण-परिणाम संबंध • निष्कर्ष |
वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन नि:संदेह 20वीं सदी की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। इतिहासकारों का मानना है कि विघटन के बीज कहीं-न-कहीं रूस की स्थापना में ही निहित थे। गार्बाचोब की नीतियाँ विघटन का मात्र तात्कालिक कारण मानी जा सकती है। स्टालिन ने रूसी संघ को अपनी नीतियों द्वारा कठोरता से संगठित किया था जिसके कारण सोवियत संघ समर्थित राज्यों में रूसी भाषा, संस्कृति तथा आर्थिक नीतियाँ लागू की गई थी। धर्म को पूर्णत: अस्वीकार कर दिया गया था। इस साम्यवादी दौर में स्थानीय संस्कृतियों के विकसित होेने के आसार लगभग नगण्य थे। अत: इस्लामिक तथा ईसाई धर्मों तथा परंपराओं को मानने वाले समूहों में सोवियत संघ के खिलाफ तीव्र आक्रोश व्याप्त था। यही वजह थी कि गार्बाचोव द्वारा लागू की गई ग्लास्तननोव (खुलापन) तथा पेरेस्नाइका (आर्थिक उदारीकरण) के द्वारा सम्मिलित राज्यों को अपनी संस्कृति को अपनाने तथा आर्थिक स्तर को सुदृढ़ करने के उपाय प्राप्त हुए जो सोवियत संघ के विघटन का महत्त्वपूर्ण कारक बना।
सोवियत संघ के समय स्थानीय निकायों से साम्यवादी लोकतंत्रीकरण की नींव डाली। इसके अनुसार पोलित ब्यूरो के सदस्यों को निकायों में जनता द्वारा निर्वाचित किया जाना था। इस प्रकार लोकतंत्रीकरण के स्वरूप ने अन्य सम्मिलित राज्यों में भी परिवर्तन की रूपरेखा निर्मित की तथा गार्बाचोव की नीतियों के कारण सर्वप्रथम लिथुआनिया बाद में क्रमश: एस्टोनिया, जॉर्जिया तथा यूक्रेन ने स्वतंत्रता की घोषणा की।
वास्तविक स्तर पर देखा जाए तो इन देशों की स्वतंत्रता में एक अन्य प्रमुख कारक आर्थिक असंतोष भी, है इनके उत्पादन तथा राजस्व सहयोग के अनुरूप इन देशों को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ। शक्ति का मुख्य केंद्र मास्को था, जो असंतोष को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ।
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि पूंजीवादी शक्तियों ने साम्यवाद के समापन के लिये विघटनकारी शक्तियों को अपना सहयोग प्रदान किया। इसलिये सोवियत संघ ने स्वतंत्र राज्य नाटो जैसे पूंजीवादी समर्थित संगठन में सम्मिलित होने के लिये तत्पर रहे।