हाल के समय में विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शामिल देशों के मध्य उपजी समस्याओं को स्पष्ट करें। साथ ही अपेक्षित सुधार के बिंदुओं को भी प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• समस्याएँ
• अपेक्षित
• निष्कर्ष
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विश्व व्यापार संगठन की स्थापना उरुग्वे दौर (1986-1994) के परिणामस्वरूप मराकेश संधि के तहत की गई थी। इसके अंतर्गत व्यापार विस्तार, रोज़गार सृजन, सतत् विकास, विकासशील देशों के मध्य व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये समान नियमों के निर्माण हेतु की गई थी। किंतु पिछले कुछ वर्षों में सदस्य देशों के मध्य कई मुद्दों पर असहमति तथा मतभेद देखने को मिला है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि वैश्विक परिवर्तनों को देखते हुए विभिन्न देशों के मध्य सामंजस्य बनाए रखने के लिये इस संस्था में सुधार किये जाएँ।
समस्याएँ
- शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व अमेरिका के नेतृत्व में एक ध्रुवीय हो गया। शीतयुद्ध के दौर में WTO के नियम अधिकतर विकसित देशों के पक्ष थे। किंतु तृतीय विश्व के विकासशील देश जब इससे जुड़े तो उन्होंने इन नियमों का विरोध करना शुरू कर दिया। जिसके कारण विकसित देशों ने अपने उद्योगों को संरक्षण देने के लिये संरक्षणवादी नीतियाँ अपनाना शुरू कर दिया। इस समस्या का समाधान खोजने में WTO विफल रहा है जिससे देशों के मध्य मतभेद बढ़े हैं।
- WTO की बैठकों में हुए समझौतों को लागू करने या उनके कार्यान्वयन को लेकर अक्सर विवाद देखा गया है। विकासशील देशों का यह भी मानना है कि नीतियाँ अधिकतर विकसित देशों के पक्ष में होती है।
- वर्तमान डिज़िटल दौर में भी ई-कॉमर्स के क्षेत्र में WTO के तहत कोई समझौता नहीं हुआ है।
अपेक्षित सुधार
- सुधार हेतु विकसित तथा विकासशील देशों को इसकी संरचनाओं तथा प्रक्रियाओं में सुधार हेतु सहयोग करना चाहिये।
- ई-कॉमर्स समझौते किये जाने चाहिये तथा प्रक्रिया को विनयिमत करने हेतु पारदर्शी व्यवस्था बनाई जानी चाहिये।
- सेवा क्षेत्र से संबंधित वैश्विक व्यापार नीतियाँ अभी भी पिछड़ी हुई है। ऐसे में सुधार हेतु ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज’ को अधिक खुला तथा पारदर्शी बनाए जाने की आवश्यकता है।
- कृषि समझौतों को पुनर्गठित किया जाए तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- सामाजिक सुरक्षा कानून, कौशल उन्नयन तथा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अधीन श्रमिकों की आवाज़ाही सुगम बनाई जाए।
- विवाद समाधान हेतु एक शक्तिशाली तंत्र का निर्माण किया जाए।
- विकासशील देशों की भागीदारी को वैश्विक अर्थव्यवस्था में विस्तार दिया जाए।