- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
विशिष्ट लक्ष्य समूहों के आहार में महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की कमी सार्वभौमिक रूप से विद्यमान है जिसकी पहचान के लिये ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने एक पैनल का गठन किया है। भारत में कुपोषण की स्थिति के संदर्भ में उक्त कथन का विवेचन करें एवं इसके समाधान के रूप में ‘फूड फोर्टीफिकेशन’ की भूमिका का परीक्षण करें।
10 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• भूमिका दें।
• भारत में कुपोषण से संबंधित कुछ आँकड़े दें।
• कुपोषण से निपटने में फूड फोर्टिफिकेशन की भूमिका का उल्लेख करें।
• निष्कर्ष लिखें।
हाल ही में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये रणनीति बनाने तथा खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन पर विनियमन के प्रेम बनाने के लिये वैज्ञानिक पैनल का गठन किया गया है, जिससे विशिष्ट लक्ष्य समूहों- बच्चों, गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं आदि के लिये पोषक आहार की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार:
- 58.9 प्रतिशत बच्चे (6-59 महीने) एनीमिया से पीड़ित हैं।
- 53.1 प्रतिशत प्रजनन क्षमता आयु वर्ग वाली महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
- 35.7 प्रतिशत बच्चे (5 साल से कम उम्र वाले) कम वज़न के हैं।
- एक अन्य आँकड़े के अनुसार आयरन की कमी से 20 प्रतिशत महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान मृत्यु हो जाती है। इसके अलावा,ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 में भारत का 100वाँ स्थान इसके कुपोषण की समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
इस समस्या से निपटने में पूड फोर्टिफिकेशन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- पूड फोर्टिफिकेशन एक कृत्रिम प्रक्रिया है। इसके माध्यम से खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिन एवं मिनरल्स को मिलाकर उनके पोषक तत्त्वों में सुधार किया जाता है।
- यह भारत में कुपोषण की स्थिति से निपटने में निम्नलिखित प्रकार से सहायक हो सकता है:
- इसके माध्यम से व्यापक तौर पर प्रयोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों में पोषकता की मात्रा शामिल की जा सकती है। इसलिये, यह जनसंख्या के एक बड़े वर्ग के स्वास्थ्य में सुधार का बेहतर तरीका है।
- यह लोगाें में पोषकता की मात्रा बढ़ाने का सुरक्षित तरीका है। खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अतिरिक्त मात्रा लोगों के स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं उत्पन्न करती है।
- यह वहनीय लागत पर उपलब्ध कराया जा सकता है तथा लोगों के भोजन पैटर्न या आदतों में किसी बदलाव की ज़रूरत भी नहीं होती है।
- यह सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से भी स्वीकार करने योग्य है।
- इससे भोज्य पदार्थो के स्वाद, सुगंध या मिश्रण में किसी बदलाव की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- यह भारत में कुपोषण की स्थिति से निपटने में निम्नलिखित प्रकार से सहायक हो सकता है:
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि पूड फोर्टिफिकेशन भारत में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये एक प्रगतिशील एवं स्वीकार करने योग्य प्रक्रिया है इससे एक स्वस्थ एवं कुपोषण मुक्त समाज के निर्माण में मदद मिलेगी।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print