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प्रश्न :
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-370, जिसके साथ हाशिया नोट ‘जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध’ लगा हुआ है, यह किस हद तक अस्थायी है? भारतीय राज्यव्यवस्था के संदर्भ में इस उपबंध की भावी संभावनाओं पर चर्चा कीजिये।
28 Nov, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
भूमिका में:
संविधान में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति का परिचय देते हुए उत्तर आरंभ करें, जैसे:भारतीय संविधान के अधीन जम्मू-कश्मीर राज्य की विशेष स्थिति है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक (1) में परिभाषित भारत के राज्य क्षेत्र का एक भाग है। परंतु अनुच्छेद 370 इसे विशेष स्थिति (स्वयं का संविधान) प्रदान करता है, जिसके कारण भारतीय संविधान के सभी उपबंध, जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते।
विषय-वस्तु में:
विषय-वस्तु के प्रथम भाग में हम जम्मू-कश्मीर की इस विशेष स्थिति के लिये ज़िम्मेदार कारकों एवं हाल में उनमें आए परिवर्तनों को स्पष्ट करेंगे।जम्मू-कश्मीर की इस विशेष स्थिति का प्रावधान अंतरिम या अस्थायी है, न कि स्थायी, जिसके लिये निम्नलिखित कारक ज़िम्मेदार थे-
- कश्मीर के विलय के लिये स्वीकृति-पत्र, जिसके तहत भारत डोमोनियन को इस रियासत के प्रतिरक्षा, विदेशी कार्य और संचार संबंधी विधि बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया।
- भारतीय संविधान सभा में गोपालास्वामी आयंगर (जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन दीवान, अनुच्छेद 370 के ड्राफ्ट निर्माता) का यह तर्क कि कश्मीर में शांति स्थापित होने तक यह अस्थायी व्यवस्था बनी रहे।
- अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति द्वारा समाप्त किया जा सकता है, किंतु जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश के आधार पर।
यदि वर्तमान समय में हम अनुच्छेद 370 का अवलोकन करें तो पाएंगे कि यह 1950 वाली स्थिति में नहीं है बल्कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा एवं विधानसभा की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से इसमें काफी परिवर्तन किये जा चुके हैं, जैसे-
- 1952 का आदेश उन विषयों के बारे में था, जिनके संबंध में संघ की अधिकारिता जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा लंबित रहने तक राज्य पर होगी।
- 1954 के आदेश के तहत जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने संसद की अधिकारिता को प्रतिरक्षा, विदेशी कार्य एवं संचार से आगे अन्य मामलों तक विस्तृत कर दिया।
- ऐसे ही आदेश 1963, 1964, 1965, 1966, 1972, 1974 एवं 1976 में भी आए, जिन्होंने अनुच्छेद 370 की शक्ति को कम किया तथा संसद की शक्ति को विस्तार दिया।
- विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम जम्मू-कश्मीर के उन विशेषाधिकारों के बारे में बताएंगे जो आज भी मौजूद हैं-
- संसद बिना विधानसभा की अनुमति के जम्मू-कश्मीर के नाम, क्षेत्र, निवास तथा वहाँ के लोगों के मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 365 का प्रयोग जम्मू-कश्मीर में नहीं किया जा सकता।
- संघ को जम्मू-कश्मीर राज्य में अनुच्छेद 360 के अधीन वित्तीय आपात की उद्घोषणा करने की शक्ति नहीं प्राप्त है।
- जम्मू-कश्मीर में पहले राज्यपाल शासन एवं उसके पश्चात् (राष्ट्रपति शासन) लागू करने की विशेष स्थिति।
विषय-वस्तु के तीसरे भाग में हम भारतीय राज्यव्यवस्था के संदर्भ में इस उपबंध की भावी संभावनाओं पर चर्चा करेंगे-
- जम्मू-कश्मीर के लिये उपर्युक्त प्रावधानों के बावजूद अनुच्छेद 370 का उपबंध-3 यह व्यवस्था करता है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सहमति से (संविधान सभा पुन: सृजित कर) अनुच्छेद 370 की समाप्ति का आदेश पारित कर सकता है।
- भारतीय राजव्यवस्था के संदर्भ में अनुच्छेद 370 का स्थायित्व भारत की राष्ट्रीय एकता व अखंडता के संदर्भ में खतरनाक है, क्योंकि इसे आधार बनाकर नक्सलवाद व उग्रवाद प्रभावित राज्यों में भी स्वायत्तता की मांग की जा सकती है।
- साथ ही उत्तर-पूर्व के राज्य भी इसी धारा के आधार पर स्वायत्तता की मांग कर सकते हैं, जो कि धारा 371 (A, B, C) से अधिक स्वतंत्रता व स्वायत्तता प्रदान करती है।
- इससे भारत में संघवाद की भावना पर विपरीत असर पड़ सकता है और केंद्र-राज्य संबंध भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
- साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष शक्तियाँ प्रदान किये जाने से अन्य राज्यों में असमानता की भावना बलवती होती है।
- इसी वज़ह से सहकारी संघवाद के ज़रिये राज्यों को सशक्त करने का जो प्रयास किया जा रहा है, उस पर विपरीत असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-भारत की एकता, अखंडता और विकास के लिये अनुच्छेद 370 को समाप्त करने हेतु लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण व संवैधानिक तरीके से प्रयास किये जाने चाहिये। ऐसा होने से देश की राजनीतिक, प्रशासनिक तथा संवैधानिक व्यवस्था में एकरूपता आएगी, भारत की एकता मज़बूत होगी, जम्मू-कश्मीर तथा देश के विकास में तेज़ी आएगी।
परंतु अनुच्छेद-370 की समाप्ति का लक्ष्य राजनीतिक लाभ या वोट बैंक के लिये नहीं होना चाहिये। वहाँ की जनता की आम सहमति इसकी आवश्यक शर्त होनी चाहिये, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अलगाववादी प्रवृत्ति में तेज़ी आ सकती है।
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