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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या भारत की क्षेत्रीय अखंडता के समक्ष गंभीर चुनौती बनते जा रहे जम्मू-कश्मीर राज्य में जारी हिंसक प्रदर्शनों के समाधान के लिये इस राज्य की विशेष प्रास्थिति में संशोधन किये जाने की ज़रूरत है? भारत एवं जम्मू-कश्मीर राज्य के मध्य वर्तमान संवैधानिक संबंधों के आधार पर अपना मत प्रस्तुत करें।

    07 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संक्षिप्त परिचय दें।

    • जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख करें।

    • विशेष प्रास्थिति में संसोधन के पक्ष-विपक्ष की चर्चा करें।

    • समस्या का समाधान देते हुए निष्कर्ष लिखें।

    • जम्मू-कश्मीर भारत का सबसे संवेदनशील राज्य है। यह आए दिन आतंकवादी गतिविधियों एवं हिंसा के कारण चर्चा में रहता है, जो भारत की क्षेत्रीय अखंडता के समक्ष गंभीर चुनौती के रूप में सामने आता है।
    • वस्तुत: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया है जिसके तहत प्रतिरक्षा, विदेश मामले एवं संचार को छोड़कर शेष मामलों में इसे लगभग स्वायत्तता प्राप्त है।
    • जम्मू-कश्मीर राज्य की विशेष प्रास्थिति में संशोधन के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि-
    • अनुच्छेद 370 को हटाकर इसे शेष राज्यों के समकक्ष किया जा सकेगा जिससे जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान समाप्त हो जाएगा।
    • जम्मू-कश्मीर में मौजूद अलगाववाद का आधार समाप्त हो जाएगा।
    • जम्मू-कश्मीर विशेषकर घाटी के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त होगा।
    • परंतु जम्मू-कश्मीर के विशेष प्रास्थिति में संशोधन किये जाने से इसके निम्नलिखित प्रभाव होंगे:
    • कश्मीरियत की पहचान पर संकट, जो कश्मीरियों की भावनाओं को भड़काने का काम करेगी। इससे हिंसा में और बढ़ोतरी होगी।
    • अलगावदियों को अपना जनाधार बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा जम्मू-कश्मीर की स्वतंत्रता की मांग ज़ोर पकड़ेगी।
    • विदेशी हस्तक्षेप का मौका मिलेगा।
    • अत: ज़रूरत हिंसा के मूल कारणों की पहचान करते हुए उसके समाधान की है। जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान निम्नलिखित उपायों के माध्यम से किया जा सकता है:
    • कश्मीरियोें को यह विश्वास दिलाना कि उनकी पहचान को कोई खतरा नहीं है।
    • अलगाववादी संगठनों द्वारा गुमराह किये जा रहे युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करना। इसके लिये ‘उड़ान’ जैसी योजनाओं को व्यापक पैमाने पर चलाया जाना चाहिये।
    • विभिन्न कार्रवाइयों में मारे गए निर्दोष कश्मीरियों की मौत पर खेद प्रकट करना, जैसा कि गोल्डन टेम्पल की कार्रवाई के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा किया गया था।
    • आर्म फोर्सेज़ पावर एक्ट के दुरुपयोग पर रोकथाम।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से सीमापार आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाना।
    • राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय सहमति बनानी चाहिये।
    • वस्तुत: जम्मू-कश्मीर की समस्या एक राजनीतिक समस्या है, अत: इसका समाधान बातचीत से ही संभव है। इस संदर्भ में हाल में कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान के लिये सभी पक्षों से बातचीत करने के लिये दिनेश्वर शर्मा की नियुक्ति एक सराहनीय कदम है।

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