मैकडोनाल्ड अवॉर्ड सरकार द्वारा सांप्रदायिक एवं संवैधानिक मुद्दों के समाधान की दिशा में एक गंभीर किंतु दूषित पहल थी, जिसने अपने अंतर्निहित दोषों के कारण परस्पर विरोधी हितों के मध्य खाई को और अधिक चौड़ा कर दिया। परीक्षण कीजिये।
01 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण • मैकडोनाल्ड अवार्ड के प्रावधानों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ करें। • अवार्ड के नकारात्मक पक्ष का उल्लेख करें। • परस्पर विरोधी हितों में टकराव एवं इसके परिणाम की चर्चा करते हुए निष्कर्ष लिखें। |
गोलमेज सम्मेलन के पश्चात् ब्रिटिश शासन ने भारतीय राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिये प्रयास किये। इन्हीं प्रयासों का परिणाम मैकडोनाल्ड घोषणा या सांप्रदायिक पंचाट था। इसके प्रावधान निम्नलिखित हैं:
प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं की सदस्य संख्या बढ़ाकर दुगुनी कर दी गई।
अल्पसंख्यकों के लिये अलग निर्वाचन की व्यवस्था की गई।
स्त्रियों के लिये भी कुछ स्थान आरक्षित किये गए।
दलितों के लिये पृथक निर्वाचन और प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया गया।
सरकार ने इस घोषणा के द्वारा दलितों की स्थिति को राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करके सुधारने का प्रयास किया, किंतु इसने राष्ट्रवाद पर गहरा आघात किया। जैसे-
इस निर्णय की योजना ही ऐसी बनाई गई थी कि प्रांतों में वास्तविक उत्तरदायी शासन का विकास न हो सके।
केंद्रीय व्यवस्थापिका के संगठन में कोई परिवर्तन नहीं किया गया।
यह निर्णय पक्षपात पर आधारित था क्योंकि इसमें यूरोपियनों और मुसलमानों को विशेष रियायतें दी गई थीं।
अस्पृश्यों के लिये अलग निर्वाचन की व्यवस्था के द्वारा हिंदुओं में पूट डालने का प्रयास किया गया।
इस निर्णय से मुस्लिम संाप्रदायिकता को बढ़ावा मिला।
इस प्रकार मैक्डोनाल्ड अवार्ड ने हिंदू-मुस्लिम हितों में टकराहट तो उत्पन्न की ही, साथ ही हिन्दुओं में भी सवर्णों और अस्पृश्यों के मध्य हितों के टकराव को जन्म दिया।
इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के लिये अधिक सहूलियतें मांगना प्रारंभ कर दिया।
हिंदुओं में अस्पृश्य वर्ग भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये लालायित हो गया। इससे हिंदू समाज में भी हितों का टकराव बढ़ गया।
इस प्रकार निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि मैकडोनाल्ड अवॉर्ड के द्वारा ब्रिटिश सत्ता ने दलितों की स्थिति में सुधार हेतु प्रयास किया था किंतु इसके नकारात्मक प्रभाव भारतीय राष्ट्रवाद पर गंभीर रूप से पड़े। इसने भारतीय समाज की विविधता में परस्पर विरोधी हितों के मध्य खाई को अधिक गहरा ही किया।