नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वायसराय लिटन की अफगान नीति नैतिक एवं सांप्रदायिक दोनों दृष्टिकोणों से निंदनीय थी तथा वह साम्राज्यवादी प्रधानमंत्री बेंजामिन डिज़रायली के हाथों की कठपुतली मात्र था। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

    31 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • वायसराय लिटन की अफगान नीति का संक्षिप्त परिचय लिखें।

    • इस नीति की नैतिक एवं सांप्रदायिक दृष्टिकोण से आलोचना लिखें।

    • स्पष्ट करें कि क्या प्रधानमंत्री बेंजामिन डिज़रायली वायसराय लिटन को नियंत्रित करते थे।

    • निष्कर्ष लिखें।

    लॉर्ड लिटन की अफगान नीति के अंतर्गत अफगानिस्तान के साथ एक अधिक, निश्चित, समानांतर और व्यावहारिक संधि करने का उद्देश्य समाहित था। लिटन तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बेंजामिन डिज़रायली की रूढ़िवादी सरकार का मनोनीत सदस्य था। लिटन को भारत में निश्चित आदेश देकर भेजा गया था कि वह अफगानिस्तान के साथ गौरवपूर्ण पार्थक्य, वैज्ञानिक सीमाएँ और प्रभाव क्षेत्रों का निर्माण करे। साथ ही, एशिया और यूरोप में रूस की बढ़ती शक्ति को राकने का प्रयास करे।

    किंतु लिटन की अफगान नीति की सभी लोगों ने नैतिक तथा राजनैतिक कारणों से निंदा की। इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:

    लिटन को अफगानी समाज, राजनीति, संस्कृति आदि का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं था। उसने इतिहास से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी।

    काबुल में एक स्थायी अंग्रेज़ी दूत रखना अव्यवहारिक था और इसका परिणाम युद्ध ही था।

    लिटन की अफगान नीति के केवल दो ही परिणाम संभव थे। या तो अफगानिस्तान के टुकड़े हो जाएँ या काबुल की विदेश नीति अंग्रेज़ों के अधीन हो जाए। किंतु इसका अनिवार्य परिणाम युद्ध ही था।

    कुछ इतिहासकारों का मत है कि लिटन ने रूस के भय को अकारण ही गंभीर समझ लिया। 

    इस प्रकार उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर लिटन की अफगान नीति की आलोचना की जाती थी। कुछ का यह विचार भी है कि लिटन साम्राज्यवादी प्रधानमंत्री बेंजामिन डिज़रायली के हाथों की कठपुतली था, क्योंकि डिज़रायली की सरकार ने ही उसे मनोनीत किया था। डिज़रायली के रूढ़िवादी एवं सांप्रदायिक दृष्टिकोण से वह पूरी तरह आच्छादित था। किंतु यह कहना उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि डिज़रायली ने स्वयं अनेक अवसरों पर लिटन की आलोचना की थी और कुशल अकर्मण्यता की नीति को अस्वीकार किया। परंतु लिटन ने स्वयं स्थिति को बिगाड़ दिया। 

    निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि लिटन की अफगान नीति अव्यवहारिक, दंभपूर्ण और अदूरदर्शी थी। यद्यपि डिज़रायली ने लिटन को वायसराय नियुक्त किया था, तथापि लिटन ने डिज़रायली की नीति का शब्दश: पालन नहीं किया था।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow