- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
पश्चिम और दक्षिण भारत में धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों का प्रसार तथा उनका स्वरूप उत्तर भारत से काफी हद तक भिन्नता दर्शाता है। कथन की सकारण विवचेना करें।
28 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलनों का सामान्य परिचय लिखते हुए उत्तर प्रारंभ करें।
• उत्तर भारत में इसका प्रसार एवं स्वरूप बताएँ।
• पश्चिम एवं दक्षिण भारत में प्रसार एवं स्वरूप बताते हुए निष्कर्ष दें।
19वीं शताब्दी के धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। यह आंदोलन बहुमुखी स्वरूप और व्यापकता लिये हुए था, इसी कारण इसने देश में व्याप्त तत्कालीन जड़ता को समाप्त करने और आम जन-जीवन को बदलने का प्रयास किया। इसके पथ प्रदर्शकों ने जहाँ एक ओर धार्मिक एवं सामाजिक सुधाराें का आह्वान किया, वहीं दूसरी ओर, इसने भारत के अतीत को उजागर करके भारतवासियों के मन में आत्मसम्मान एवं आत्मगौरव जगाने का प्रयास किया। इन आंदोलनों के पीछे दो शक्तियाँ कार्य कर रही थीं; प्रथम, अंग्रेज़ी शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से अवतरित हुई थी तो दूसरी, ईसाई मिशनरियों के कार्यों के विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया के रूप में हिंदुओं में उत्पन्न हुई।
19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही इनका आविर्भाव हो चुका था, जो शताब्दी के अंत होते-होते संपूर्ण भारत (पश्चिम एवं दक्षिण) में पैल गया। किंतु उत्तर भारत के सुधार आंदोलन दक्षिण या पश्चिम भारत की तुलना में काफी भिन्नता लिये हुए था। इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है।
उत्तर भारत में धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों का प्रसार एवं स्वरूप:
उत्तर एवं पूर्वी भारत में सुधारकों ने किताबी आदर्शवाद को यथार्थ बनाने का प्रयास किया (यंग बंगाल आंदोलन)। इनके आदर्श और सामाजिक यथार्थता में कोई मेल नहीं था।
बंगाल में सुधारकों ने अंग्रेज़ी भाषा को प्रधानता दी न कि स्थानीय भाषा को।
दक्षिण के विपरीत बंगाल में कुशल नेतृत्व उपलब्ध था। इस कारण इस क्षेत्र के सुधार आंदोलन सतत् एवं दूरगामी थे।
पश्चिम एवं दक्षिण भारत में प्रसार एवं स्वरूप:
पश्चिम भारत में बंगाल की तुलना में सुधारक अधिक व्यावहारिक और यथार्थवादी थे।
पश्चिम भारत में सुधारकों ने देशी भाषाओं का प्रयोग किया जिस कारण यह अधिक लोकप्रिय हुआ एवं जनता के निकट पहुँचा।
दक्षिण भारत में बंगाल के विपरीत आधुनिक शिक्षा की गति धीमी थी।
दक्षिण भारत में ब्राह्मण ही प्रमुख उच्च पदों पर आसीन थे। ऐसे में वे सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन लाकर स्वयं की सर्वोच्चता को क्षीण नहीं करना चाहते थे।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print