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प्रश्न :
कई महत्त्वपूर्ण मोर्चों पर असफल रहनेे के बावजूद स्थायी बंदोबस्त एक प्रगतिशील व्यवस्था थी। टिप्पणी करें।
27 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• स्थायी बंदोबस्त का संक्षिप्त परिचय लिखते हुए उत्तर प्रारंभ करें।
• स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था के नकारात्मक पक्ष लिखें।
• इस व्यवस्था के सकारात्मक पक्ष को बताते हुए निष्कर्ष लिखें।
भारत में ब्रिटिश राज के सफल होने के पीछे उनके द्वारा लागू की गई भू-राजस्व नीतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। स्थायी रूप से राजस्व की प्राप्ति और भू-स्वामियों का निष्ठावान वर्ग आदि कारकों ने ही ब्रिटिश सत्ता को सुदृढ़ किया। स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था इन भू-राजस्व नीतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण थी। यह एक दीर्घकालिक (सामान्यत: 10 वर्ष) व्यवस्था थी। इसमें लगान की दर ज़मींदारों और उनके उत्तराधिकारियों के लिये निश्चित कर दी गई, जो भविष्य में बदली नहीं जा सकती थी। ज़मीदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया और कृषक अब केवल किरायेदार मात्र रह गए।
स्थायी बंदोबस्त का शासन तथा जनता पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव पड़े। इन्हें निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
नकारात्मक प्रभाव:
शासन पर:
भू-राजस्व स्थायी होने से कंपनी को अधिक उत्पादन की स्थिति में भी निश्चित राजस्व ही प्राप्त होता था और अतिरिक्त आय को भू-स्वामी या बिचौलिये हड़प कर जाते थे।
कालांतर में यह स्थिति और भी विकराल हो गई। जब समय के साथ उत्पादन और वसूली तो बढ़ी किंतु कंपनी को इस बढ़े हुए उत्पादन का कोई लाभ नहीं प्राप्त हुआ।
जनता पर:
बहुत अधिक लगान एवं उसे निर्धारित समय पर न चुकाए जाने के कारण पुराने ज़मींदार भूमि से वंचित किये जाने लगे और किसान कर्ज़ में डूब गए।
बिचौलियों का भूमि संबंधी मामलों में प्रवेश हुआ, जिससे उपसामंतीकरण बढ़ा तथा उनके द्वारा कृषकों का शोषण बढ़ता गया।
अधिकांश ज़मींदार प्रवासी थे, जो दूरवर्ती शोषणकर्त्ता बन गए।
यद्यपि स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी व्यवस्था के ब्रिटिश शासन एवं आम जनता पर नकरात्मक प्रभाव पड़े, तथापि इसके कुछ सकारात्मक पक्ष भी थे। जैसे-
वित्तीय दृष्टि से इसका प्रमुख लाभ यह था कि न्यून उत्पादन की दशा में भी कंपनी की आय घटती नहीं थी। इससे बचत की संभावना बढ़ी।
स्थायी प्रबंध हो जाने पर इस व्यवस्था में लगे हुए सरकारी कर्मचारियों की कुछ संख्या शासन संबंधी अन्य कार्यों को करने के लिये मुक्त हो गई।
कृषकों के लिये ऐसा माना गया कि इससे उत्पादन बढ़ेगा और अधिकाधिक भूमि जोती जाएगी।
ज़मींदारों को कृषि क्षेत्र में नए प्रयोग, उर्वरक का इस्तेमाल तथा फसल बदलने के तरीकों को अपनाने का मौका मिलेगा।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि स्थायी बंदोबस्त के जहाँ कुछ नकारात्मक पक्ष थे तो वहीं कुछ सकारात्मक पक्ष भी थे। फिर भी सामान्यत: यह व्यवस्था कंपनी हितैषी और कृषक विरोधी थी। इसने कृषकों के शोषण को बढ़ावा दिया। इस व्यवस्था से बंगाल के कृषकों की स्थिति खराब होती गई और स्थायी बंदोबस्त कृषकों के शोषण का साधन बन गया।
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