महानगरीय जलवायु में वायु प्रदूषण की बढ़ती विषाक्तता ने प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को खतरे में डाल दिया है। अनुच्छेद-21 के तहत स्वच्छ हवा में जीने के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के निर्णयन एवं दिल्ली में हालिया वायु प्रदूषण के संकट के आलोक में उक्त कथन का परीक्षण करें।
26 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण • संक्षिप्त परिचय दें। • उच्चतम न्यायालय के निर्णय एवं निर्देश के आलोक में दिल्ली एवं अन्य महानगरीय क्षेत्रों के प्रदूषण समस्या की चर्चा करें। • अंत में सुझाव सहित निष्कर्ष दें। |
अनुच्छेद-21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है। इसके व्यापक निर्वचन के माध्यम से उच्चतम न्यायालय ने लगभग सभी मानवाधिकारों को इसमें शामिल कर लिया है।
उच्चतम न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ के मामले में निर्धारित किया कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना गरिमापूर्ण जीवन की आवश्यक शर्त है, अत: यह भी अनुच्छेद 21 के द्वारा प्रदत्त ‘प्राण की स्वतंत्रता’ का एक अनिवार्य पक्ष है।
परंतु जिस तरह से दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों तथा देश के अन्य महानगरीय क्षेत्रों में प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है उससे पूरा वातावरण विषाक्त हो गया है और इससे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
चूँकि मौलिक अधिकारों के संरक्षण की ज़िम्मेदारी उच्चतम न्यायालय की है, अत: अपने कई निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या से निपटने के लिये सरकारों को निर्देश भी दिये, जैसे-
केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के प्रावधानों को कठोरता से लागू करना, जिसके बाद दिल्ली में 15 साल पुराने वाहनों को प्रतिबंधित किये जाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
उच्च न्यायालयों में हरित पीठों की स्थापना का सुझाव, जिसके बाद एक कानून के माध्यम से राष्ट्रीय हरित पीठ की स्थापना की गई।
परंतु हाल के दो-तीन वर्षों में जिस तरह से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर हुई है उससे निश्चय ही मौलिक अधिकार संकट में पड़ गए हैं।
इस संदर्भ में यह महत्त्वपूर्ण है कि स्वच्छ पर्यावरण केवल राज्य की ही नहीं बल्कि नगारिकों की भी ज़िम्मेदारी है। इसके लिये केंद्र-राज्य एवं नागरिकों को साथ मिलकर स्वच्छ वातावरण के लिये प्रयास करना चाहिये, जिससे स्वच्छ वातावरण का मौलिक अधिकार गरिमापूर्ण जीवन को सुनिश्चित कर सके।