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प्रश्न :
असहयोग आंदोलन की वापसी ने जिस क्रांतिकारी आंदोलन की नींव तैयार की थी, उसे काकोरी कांड ने समाप्त कर दिया था। समीक्षा कीजिये।
19 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में असहयोग आंदोलन की वापसी की चर्चा करें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में आंदोलन की वापसी के तात्कालिक प्रभावों के परिणामस्वरूप क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत और काकोरी कांड की चर्चा करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
अगस्त 1920 से शुरू हुआ असहयोग आंदोलन 1922 में अपने चरम पर था कि बारदोली प्रस्ताव में गांधी जी ने आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। इसके मुख्य रूप से दो कारण बताए जाते हैं –(1) 5 फरवरी 1922 को घटित चौरीचौरा कांड जिसमें ख़िलाफ़त के एक जुलूस में शामिल उत्तेजित भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया तथा 22 पुलिसकर्मी मारे गए और (2) सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होने से पहले ही असफल होने से बचाने के लिये असहयोग आंदोलन को वापस लिया जाना।
कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन आंदोलन के एकाएक वापस लिये जाने से उत्साही जनता की उम्मीदों पर पानी फिर गया। जनांदोलन की आँधी में उत्साहित होकर जिन युवकों ने पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी थी और कुछ ने तो अपना घर-बार भी छोड़ दिया था, वे अब महसूस कर रहे थे कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। अहिंसक आंदोलन की विचारधारा से उनका विश्वास उठने लगा और किसी अन्य विकल्प की तलाश की जाने लगी। इनमें से अधिसंख्य ने अब मान लिया था कि सिर्फ हिंसात्मक तरीकों से ही आज़ादी प्राप्त की जा सकती है और यहीं से क्रांतिकारी आंदोलन की नींव तैयार हुई।
सबसे पहले क्रांतिकारियों ने संगठित होना शुरू किया। अक्तूबर 1924 में इन क्रांतिकारी युवकों का कानपुर में एक सम्मलेन हुआ जिसमें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र की स्थापना करना था। संघर्ष छेड़ने से पहले बड़े पैमाने पर प्रचार कार्य किया जाना ज़रूरी था, नौजवानों को अपने दल में मिलाना और प्रशिक्षित करना तथा हथियार भी जुटाने थे। इसके लिए पैसों की ज़रुरत थी। संगठन ने लखनऊ के पास के एक गाँव काकोरी में रेल विभाग के खजाने को लूट कर पहली बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया। यह घटना इतिहास में काकोरी काण्ड के नाम से मशहूर है। ब्रिटिश सरकार इस घटना से कुपित हुई और भारी संख्या में युवकों को गिरफ्तार कर उन पर मुकद्दमा चलाया गया। अशफाक़उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी जैसे आंदोलन को दिशा देने वाले क्रांतिकारियों को फाँसी दे दी गई। चार को आजीवन कारावास और 17 अन्य को लंबी सज़ा सुनाई गई, जबकि चंद्रशेखर आज़ाद फरार हो गये थे।
वस्तुतः उतर भारत के क्रांतिकारियों के लिये काकोरी कांड एक बड़ा आघात ज़रूर था पर ऐसा नहीं था कि इसने क्रांतिकारी आंदोलन को समाप्त कर दिया था बल्कि इसने क्रांतिकारी संघर्ष के लिये अनेक युवाओं को तैयार किया जिनमें भगत सिंह, सुखदेव, शिव वर्मा, और जयदेव कपूर जैसे क्रांतिकारी प्रमुख थे।
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