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प्रश्न :
‘मैकाले ने भारत में न केवल अंग्रेज़ी शिक्षा की मज़बूत नींव में रखी बल्कि युवा मस्तिष्क को ज्ञान के माध्यम से प्रेरित कर सामाजिक सुधार आंदोलनों को भी दृढ़ किया।’ चर्चा करें।
14 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने के दृष्टिकोण:
• मैकाले के घोषणा पत्र का उद्देश्य ।
• तत्कालीन समाज में व्याप्त रूढ़ियां।
• पश्चिमी ज्ञान का प्रभाव से शुरू आंदोलन
• स्पष्ट करें कि आंदोलनों का कारण अंग्रेज़ी शिक्षा पद्धति है।
भारतीय इतिहास में लार्ड मैकाले द्वारा प्रस्तुत स्मरण पत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 2 फरवरी, 1835 को पेश किये गए इस स्मरण पत्र से यह विवाद लगभग खत्म हो गया कि भारतीयों के लिये प्राच्य भाषा में शिक्षा की व्यवस्था की जाए या आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में। भारतीयों के लिये विचार एवं संस्कृति का निर्माण यूरोपीय भाषाओं के आधार पर निश्चित होना अब स्वाभाविक था। इस नवीन अंग्रेज़ी शिक्षा पद्धति ने प्रगतिशील यूरोपीय विचारों तक भारतीयों की पहुँच बनाकर उनमें एक वैज्ञानिक, तर्कवादी दृष्टिकोण को जन्म दिया जिसका परिणाम सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ।
1835 के आसपास भारत में सामाजिक आंदोलनों का दौर शुरू हो चुका था। राजा राम मोहन राय के प्रयासों के परिणामस्वरूप 1829 में ही विधवा विवाह अधिनियम पारित हो चुका था। लेकिन यहाँ ये भी जानना ज़रूरी है कि राजा राम मोहन राय अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान थे। मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारतीय मध्यमवर्ग को एक नई सोच दी। इसी भाषा ने जब रोज़गार के द्वार खोले तब जन सामान्य में यह भावना बैठ गई कि इनकी सोच का वैज्ञानिक आधार सही है। भारत में महिलाओं की शिक्षा, बाल विवाह, तंत्र-मंत्र का विश्वास, जाति व्यवस्था आदि ऐसी परंपराओं को वैज्ञानिक सोच से सीधी चुनौती मिली। कालांतर में कई ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी पैदा हुए जिन्होंने वैज्ञानिक सोच को आधार बनाकर सामाजिक आंदोलन चलाए।
दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज हो या सर सैयद अहमद खाँ का एंग्लो ओरियण्टल कॉलेज, सभी ने अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध ज्ञान के आधार पर तत्कालीन सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती दी। 1891 में सम्मति आयु अधिनियम पारित किया गया, जिसका तिलक जैसे कट्टर दक्षिणपंथियों ने विरोध किया, फिर भी यह अधिनियम सफलतापूर्वक लागू हुआ। विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना करके एवं थियोसोफिकल सोसाइटी की मद्रास शाखा से शुरुआत ने भारतीय परम्पराओं में व्याप्त रूढ़ियों को वैज्ञानिक आधार पर परखने एवं समाज सुधार को नई दिशा देने का काम किया।
अतः यूरोपीय भाषाओं द्वारा अर्जित वैज्ञानिक बोध एवं ज्ञान ने भारतीय समाज सुधारों को न सिर्फ तेज़ किया बल्कि कई रूढ़ियों को तोड़ते हुए एक नई दिशा भी प्रदान की।
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