"जहाँ गांधी ने नैतिक बल द्वारा हिंदू जातियों के हृदय परिवर्तन की कोशिश की, वहीं अंबेडकर अछूतों के अधिकार के लिये न्यायिक साधनों से प्रयास करते रहे।" कथन का विश्लेषण कीजिये।
11 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोणः
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गांधी तथा अम्बेडकर दोनों ने अछूतों की बेहतरी के लिये कार्य किया, लेकिन सामाजिक न्याय के मुद्दे पर उनके दृष्टिकोणों में व्यापक अंतर है। गांधी जी कर्तव्य आधारित नैतिक सिद्धांत में विश्वास करते थे तथा उच्च जातियों से अछूतों को स्वीकार करने के लिये कहते हैं। अछूतों को हरिजन (भगवान के पुत्र) कहते हैं। वे यह नहीं कहते कि अछूतों के अधिकार हैं, लेकिन यह कहते हैं कि उन्हें स्वीकार करना ऊँची जातियों का कर्तव्य है।
गांधी जी इसे नैतिक धब्बा मानते हैं तथा प्रायश्चित के कार्यों द्वारा समाप्त करना चाहते हैं एवं कानूनी-संवैधानिक तरीकों की सीमित उपयोगिता पर विश्वास करते हैं। वे चाहते थे कि सुधार हिन्दूवाद के अंदर से होना चाहिये। इसलिये उन्होंने ‘पूना पैक्ट’ पर भूख हड़ताल की थी।
दूसरी ओर ऐसे व्यवहारों पर रोक लगाने तथा अछूतों के उत्थान के लिये अंबेडकर ने कानूनी दृष्टिकोण अपनाया। उनका विश्वास था कि उच्च जाति के हिन्दू बिना कानूनी-संवैधानिक तरीकों के उन्हें कोई अधिकार नहीं देंगे। इसलिये उन्होंने सभी तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया तथा अछूतों के उचित प्रतिनिधित्व के लिये पूना पैक्ट 1932 को पारित किया जाना सुनिश्चित किया। उन्होंने आरक्षण की भी वकालत की जबकि भारत सरकार अधिनियम 1935 में शिड्यूल्ड कास्ट नाम नहीं दिया गया था। बाद में भारतीय संविधान ने भी शिड्यूल्ड कास्ट (अनुसूचित जाति) के लिये अनेक प्रावधान किये। इसके पीछे अंबेडकर की प्रेरणा मुख्य थी।
अंबेडकर का कानूनी-संवैधानिक उपाय संबंधी दृष्टिकोण भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिये ज़्यादा अनुकूल था जबकि गांधी नैतिक आदर्शवादी थे तथा उन्होंने ‘दिल में परिवर्तन’ तथा नैतिक सिद्धांत के जरिए परिवर्तन का आह्वान किया।
फिर भी, अपने विचारों में वे एक-दूसरे से भले ही दूर हों लेकिन समाज में चेतना फैलाने तथा उसे शिक्षित करने में वे एक-दूसरे के पूरक थे तथा उन्होंने हमारे संविधान में सामाजिक न्याय के ढाँचे की स्थापना के लिये कार्य किया।