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प्रश्न :
'किसी राष्ट्र के लिये स्वाधीनता सर्वोपरि है; इस मूलमंत्र को नवयुवाओं की नसों में प्रवाहित कर,राष्ट्र के युवकों के लिये आज़ादी को आत्मप्रतिष्ठा का प्रश्न बना देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाई। टिप्पणी कीजिये।
11 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोणः
- 19वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के कारण।
- राष्ट्रवादी चेतना के परिणामस्वरूप भारतीयों के मनोबल में हुई वृद्धि एवं इसके परिणामस्वरूप किये गए विभिन्न कार्य।
- सुभाष चंद्र बोस का स्वाधीनता संघर्ष में योगदान।
- निष्कर्ष।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारत में राष्ट्रवाद का तेज़ी से विकास हुआ और एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ हुआ। इस राष्ट्रवाद के विकास में ब्रिटिश शासन की शोषणपरक एवं प्रजातीय विभेद की नीतियों, आर्थिक और सामाजिक असंतोष, अंग्रेज़ों द्वारा किया गया भारत का प्रशासनिक और आर्थिक एकीकरण, पाश्चात्य चिंतन, अंग्रेज़ी शिक्षा एवं सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों से उत्पन्न चेतना आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
राष्ट्रवादी चेतना के विकास के परिणामस्वरूप भारतीयों के मनोबल में वृद्धि हुई और उनमें एक तर्कवादी आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास हुआ जिसके द्वारा उन्होंने शासन व उसकी नीतियों का स्वमूल्यांकन शुरू किया एवं उसके शोषणपरक स्वरूप की अनुभूति कर असंतोष से भर गए तथा सदियों से आच्छादित निष्क्रियता से बाहर आए। फलतः वे अंग्रेज़ों के विरुद्ध संगठित हुए, जिस कारण भारत में कई राजनीतिक संस्थाओं, जैसे- लैण्डहोल्डर्स सोसाइटी, मद्रास महाजन सभा और सबसे महत्त्वपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आदि की स्थापना हुई। कांग्रेस के नेतृत्व में चले राष्ट्रीय आंदोलन ने देश की जनता को संगठित किया और उन्हें औपनिवेशिक शासन के दुष्प्रभावों से अवगत कराया। सुभाष चंद्र बोस ने भी कांग्रेस से जुड़कर राष्ट्रीय आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सुभाष चंद्र बोस ने जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर कांग्रेस को समाजवादी दिशा प्रदान की और उसे सर्वहारा वर्ग के प्रति और अधिक प्रतिबद्ध बनाने का प्रयास किया। सुभाष ने नेहरू रिपोर्ट के निर्माण में योगदान दिया, कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन की अध्यक्षता की तथा राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की। 1939 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
द्वितीय विश्व युद्ध की परिस्थितियों से लाभ उठाकर भारत को स्वतंत्र कराने की इच्छा के साथ वे भारत के बाहर गए तथा ब्रिटिश विरोधी शक्तियों से भारत की स्वतंत्रता हेतु मदद मांगी, जिसके फलस्वरूप आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ। आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में सुभाष ने ब्रिटिश विरोधी शक्तियों के साथ मिलकर भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने का प्रयास किया। यद्यपि वे अपने प्रयास में सफल न हो सके परंतु उनके कार्यों ने देश की जनता को उद्वेलित किया जिसे आज़ाद हिंद फौज पर मुकदमे के दौरान महसूस किया गया।
इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना के प्रसार एवं स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस ने बहुमूल्य योगदान दिया। राष्ट्र सदैव उनके प्रयत्नों के प्रति आभारी रहेगा।To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
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