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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्लासी से विभाजन तक भारत के प्रति अंग्रेज़ों के कार्यक्रम, नीतियाँ और दृष्टिकोण न केवल घरेलू कारकों से निर्धारित होते थे बल्कि इन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के आयामों ने भी लगातार आकार दिया। टिप्पणी करें।

    04 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोणः

    • प्लासी का युद्ध 1757 में हुआ था, उसके बाद के समय की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को संक्षेप में लिखते हुए भारतीय सामाजिक, संवैधानिक सुधारों से जोड़ें।

    • कुछ प्रमुख भारतीय आंदोलनों का भी जिक्र करें।

    • विश्वयुद्ध I, II, 1917 की रूसी क्रांति, 1905 में जापान की विजय आदि को भारतीय संवैधानिक सुधारों से जोड़ें।

    • निष्कर्ष लिखें।

    प्लासी का युद्ध 1757 में हुआ था। इसके बाद भारत में अंग्रेज़ों ने अपनी पकड़ और मजबूत करनी शुरू कर दी। अमेरिका की क्रांति का ब्रिटिश नीतियों पर स्पष्ट प्रभाव दिखता है। लार्ड कार्नवालिस को अमेरिका में सरेंडर करने के बाद भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भारत भेजा गया। अमेरिका जैसी क्रांति भारत में न हो इसके लिये कार्नवालिस ने कठोर नियम एवं कानून बनाए। 1813 के चार्टर से ब्रिटिश नागरिकों को भारत में व्यापार करने की अनुमति मिल गई। इसके मूल में भी वे अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ ज़िम्मेदार थीं, जिसने ब्रिटिश नागरिकों के लिये व्यापार के अवसर सीमित किये थे।

    भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप भी अंग्रेज़ों को कई नियम बनाने या बदलने पड़े। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक एक बड़ा मध्यम वर्ग पाश्चात्य चिंतकों से प्रभावित हो चुका था। ऐसे में अंग्रेज़ों को इन सुधार आंदोलनों की मांगों के हिसाब से सोचना पड़ता था। 20वीं सदी में लगभग सभी बड़े भारतीय नेता विदेशों से पढ़ाई पूरी करके आए थे, ऐसे में अंग्रेज़ उनकी संवैधानिक मांगों को खारिज नहीं कर सकते थे।

    फ्राँस की क्रांति के फलस्वरूप, विश्व भर में नए विचार फैले। उनका प्रभाव ब्रिटिश नीतियों पर पड़ना स्वाभाविक था। 1840 के दशक में जब ब्रिटिश सेना ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया तो वहाँ उसे हार का सामना करना पड़ा। अगले कुछ सालों तक अंग्रेज़ इसलिये चुप थे कि कहीं सोवियत संघ अफगानिस्तान के साथ खुलकर सामने न आ जाए। 1905 में जब जापान ने रूस को पराजित कर दिया तो भारतीयों की इस धारणा को बल मिला कि यूरोपीय अपराजेय नहीं हैं। संवैधानिक सुधारों की दशा में 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार इसी का प्रतिफल था।

    प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सेना ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ी थी, जिसका परिणाम 1919 का मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में मिला। भारत में रॉलेट एक्ट लगाने का एकमात्र कारण, अंग्रेज़ों का यह डर था कि कहीं सोवियत संघ की तरह भारत में भी सशस्त्र क्रांति न हो जाए। भारत में मार्क्सवादी अपनी जड़ें न जमा लें, इसके लिये अंग्रेज़ों ने हर किसी घटना का बर्बरतापूर्वक दमन किया। जैसे- कानपुर षड्यंत्र केस, मेरठ षड्यंत्र केस आदि।

    द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। स्पष्ट है कि अंग्रेज़ों की नीतियाँ, कार्यक्रम एवं वैचारिक आधार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के संश्लेषित रूप का प्रतिफल थे।

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