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प्रश्न :
भारत में स्वयं सहायता समूहों के प्रसार को इन समूहों की प्रभावशीलता के संकेतक के रूप में देखा गया था लेकिन हालिया अध्ययन बताते हैं कि स्वयं सहायता समूह शासन, गुणवत्ता, पारदर्शिता और अपने क्रियाकलापों में अनियमितता से संबंधित मुद्दों से जूझ रहे हैं। चर्चा करें।
02 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति भारत में 1970 के दशक में डॉ. ईला भट्ट द्वारा गठित “SEWA (Self Employed Women Association)” से मानी जाती है। इसका (SHG'S) गठन सामान्य तथा गैर-सरकारी संगठनों अथवा सरकारी निकायों द्वारा किया जाता है। इनमें अधिकतम 20 सदस्य भारतीय विधिक प्रणाली के अंतर्गत SHG'S के रूप में अपना पंजीकरण कराते हैं।
इनका उद्देश्य केवल वित्तीय मध्यस्थता ही नहीं है बल्कि इनका संचालन, स्वप्रबंधन और विकास के ज़रिये कम लागत वाली वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लक्ष्य को लेकर संचालित होता है। इसके साथ ही बैंकिंग गतिविधियों को बढ़ावा देना, बचत तथा ऋण के लिये सहयोग करना तथा समूह के सदस्यों के भीतर आपसी विश्वास और आस्था को बढ़ावा देना है।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में 33 लाख पंजीकृत स्वैच्छिक संगठन हैं और वे सहभागी लोकतंत्र के क्रियान्वयन और उसको ठोस रूप प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वर्तमान में भारत में कुछ सक्रिय SHG'S इस प्रकार हैंः- तुलसी माला जनसेवा परिषद, कुरूक्षेत्र सेवा आदि। लेकिन हालिया अध्ययन बताते हैं कि स्वयं सहायता समूह शासन, प्रशासनिक गुणवत्ता, पारदर्शिता और क्रियाकलापों में अनियमितता जैसे कार्यों में संलग्न हैं इसके लिए निम्नलिखित कारक ज़िम्मेदार हैं-
- SHG'S के सभी सदस्यों का सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक व आर्थिक रूप से एकसमान न होना।
- यह माना जाता है कि यदि संख्या 15 से 20 रहे तो अच्छी स्थिति होती है, लेकिन कई SHG'S में संख्या 10 से भी कम है।
- 1 महीने में इनकी चार मीटिंग होनी चाहिये, परंतु देखा गया है कि एक महीने में दो से भी कम मीटिंग होती हैं।
- SHG'S में सदस्यों की उपस्थिति भी कम होना (< 70%) जबकि आर्थिक उपस्थिति (> 90%) होना एक अच्छी स्थिति मानी जाती है।
- यदि शैक्षणिक स्तर की बात की जाए तो 30% से अधिक सदस्यों को लिखना और पढ़ना आना चाहिये, जबकि व्यवहार में 20 से भी कम सदस्य लिखना-पढ़ना जानते हैं।
- यह भी देखा गया है कि अधिकांश सदस्य SHG'S के नियम-कानून से परिचित ही नहीं हैं।
- सरकारी कार्यक्रमों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये, जिसका अभाव अधिकांश सदस्यों में देखा जाता है।
- जमा की राशि का पूर्णतः उपयोग (सदस्यों को ऋण देना) भी नहीं किया जाता है।
- इसके अलावा बैंकों का उदासीन रवैया, व्यावसायिक मनोवृत्ति का अभाव, कार्य के स्पष्ट मानक एवं मानदंडों का अभाव भी देखा गया है।
- SHG'S के सदस्यों में स्पष्ट जवाबदेही व ज़िम्मेदारी का अभाव, यहाँ तक कि आंतरिक ऋण की दर भी अधिक देखी गई है।
इन सभी बिंदुओं से स्पष्ट है कि भारत में कार्यरत SHG'S कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियों के बावजूद अपने वांछनीय स्तर तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। अतः यह आवश्यक है कि सही समय पर मीटिंग का आयोजन, सदस्यों की साक्षरता में वृद्धि, प्रशिक्षण, सहभागिता दर में वृद्धि, फंडों का सही उपयोग तथा सरकारी योजनाओं की समुचित जानकारी उपलब्ध कराई जाए। हालाँकि सरकार इस दिशा में प्रतिबद्ध है।
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