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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    कांट का नैतिक दर्शन कठोर है तथा वह मानवीय प्रवृत्ति एवं कर्त्तव्यों के बीच लगातार संघर्ष को देखता है। टिप्पणी करें।

    29 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • कांट के नैतिक दर्शन के परिचय से उत्तर प्रारंभ करें।

    • कांट का सिद्धांत और मानवीय कर्त्तव्यों के मध्य संघर्ष बताएँ।

    • निष्कर्ष।

    • इम्मैनुअल कांट एक जर्मन दार्शनिक था जिसने कर्त्तव्य के विचार पर आधारित नैतिक सिद्धांत प्रतिपादित किया। कांट का नैतिक दर्शन कठोर है। उसका मानना है कि प्रकृति ने मनुष्य को स्वाभाविक ‘निर्मल आत्मा’ से नहीं नवाजा है। कांट के अनुसार, आत्मा की अंतः अच्छाई पर ऐसा विश्वास करना कि जिसे न तो प्रेरणा की ज़रूरत होती है, न ही रोकने की और न ही किसी आदेश की, नितांत आत्म-श्लाघा (Perkiness) होगी और इस प्रकार अपने कर्त्तव्य को भूल जाना होगा। सही के लिये केवल भावना पर निर्भर रहना मानव नैतिकता को नष्ट कर देगा।
    • कांट के नैतिक कर्त्तव्य की संकल्पना काफी विस्तृत है: यह एक व्यक्ति की बुद्धिपरक सोच का परिणाम है। उसका मानना है कि मानव क्रियाकलाप के अच्छे या बुरे परिणाम हो सकते हैं, किंतु ये क्रियाकलाप के नैतिक मूल्य को निश्चित नहीं करते। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि जो कार्य अवांछित परिणाम देता है, नैतिक हो सकता है तथा जो कार्य अच्छे परिणाम देता है, वह अनैतिक हो सकता है। परिणामों का नैतिक उत्तरदायित्वों या कर्त्तव्य से इस प्रकार का सरोकार नहीं है कि वह अकेला ही यह निश्चित कर सकता है कि क्रियाकलाप नैतिक है या नहीं।
    • कांट के विचार में नैतिकता खुद ही अपना पुरस्कार है और प्रत्येक की ज़िम्मेदारी वह कार्य करने की है जो उसे करना चाहिये। कर्त्तव्य पालन का यह उत्तरदायित्व तब भी समाप्त नहीं हो जाता है, जब अन्य लोग सिद्धांत की अवज्ञा करें। अन्य लोगों द्वारा सिद्धांतों का जवाबी पालन न होने पर भी व्यक्ति नैतिक सिद्धांतों से बंधा होता है।
    • अत: उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि कांट कर्त्तव्यों पर अत्यधिक बल देता है। कर्त्तव्य पर आधारित उसका नैतिक दर्शन अत्यधिक कठोर है जो मानव प्रवृत्ति से कर्त्तव्यों का निरंतर संघर्ष देखता है।

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