उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका ।
• विभिन्न इमारतें तथा उनकी निर्माण शैली।
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औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात धीरे-धीरे मुगल सत्ता कमज़ोर होने लगी ,इसका फायदा यूरोपीय कंपनियों ने उठाया। भारत में केंद्रीय मुगल सत्ता कमज़ोर होने के बाद क्षेत्रीय शासकों ने क्षेत्र विशेष पर कब्ज़ा कर शासन करना शुरू कर दिया, तत्पश्चात इन शासकों को हराकर अंग्रेज़ों ने 1947 तक भारत पर शासन किया। अतः आधुनिक काल में भारत पर यूरोपीय शक्तियों के आधिपत्य के साथ ही स्थापत्य में भी यूरोपीय प्रभाव पड़ना शुरू हो गया क्योंकि यूरोपीय लोगों के पास भी वास्तुकला का विपुल ज्ञान था जो भारतीय स्थापत्य में भी दृष्टिगोचर होता है। अंग्रेज़ों ने गोथिक एवं नवगोथिक, इम्पीरियल, क्रिश्चियन, विक्टोरियन, नवशास्त्रीय, रोमांसक्यू व पुनर्जागरण जैसी यूरोपीय शैलियों की इमारतें बनवाईं।
अंग्रेज़ों ने भारतीय उपनिवेश को अपने घर जैसा माहौल देने के लिए, अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता के प्रदर्शन तथा भारतीय लोगों से दूरी बनाए रखने हेतु यूरोपीय शैली को अपनाया। 1833 ई. में बना मुंबई का टाउन हॉल तथा 1860 के दशक में मुंबई में बनी कई इमारतें नवशास्त्रीय शैली के उदाहरण हैं इनमें बड़े-बड़े स्तंभों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण किया गया।
नवगोथिक शैली में मुंबई के सचिवालय, विश्वविद्यालय, उच्च न्यायालय जैसी कई इमारतें बनीं जो तत्कालीन वणिक वर्ग को पसंद आईं। नवगोथिक शैली का सबसे अच्छा उदाहरण वर्तमान मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस है जो कभी ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे कंपनी का स्टेशन और मुख्यालय विक्टोरिया टर्मिनस था। इसे विश्व विरासत सूची में भी शामिल कर लिया गया है।
इंडो-सारसेनिक शैली हिंदू, मुस्लिम और पश्चिमी तत्त्वों का मिश्रण है जिसमें गुंबदों, छतरियों, जालियों व मेहराबों को अपनाया गया है। अंग्रेज़ों ने इस शैली में सार्वजनिक भवन, जैसे- डाकखाना, रेलवे स्टेशन, विश्राम गृह, सरकारी दफ्तर आदि का निर्माण करवाया।
विलियम इमरसन ने कलकत्ता के विक्टोरिया मेमोरियल को बनाने में ताजमहल से प्रेरणा ली, यह ब्रिटिश स्थापत्य में भारतीय तत्त्वों की बढ़ती मात्रा का प्रतीक है। आगे सेंट जॉन कॉलेज आगरा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (म्योर कॉलेज) तथा मद्रास उच्च न्यायालय के निर्माण में यह शैली निखरकर सामने आई।
दिल्ली का स्थापत्य
- दिल्ली में कश्मीरी गेट क्षेत्र में मेटकॉफ हाउस (1835) तथा सेंट जेम्स चर्च (1836) दिल्ली के सबसे पुराने ब्रिटिश स्थापत्य के नमूने हैं।
- इसके अलावा टाउन हॉल (1866), घंटाघर (1868), सेंट स्टीफन कॉलेज (1881), हिंदू कॉलेज (1866), रामजस कॉलेज (1917) आदि उस दौर के महत्त्वपूर्ण स्थापत्य हैं।
- वर्ष 1911 में नई दिल्ली की देश की नई राजधानी की घोषित किये जाने से पहले ब्रिटिश अधिकारी सिविल लाइंस इलाके में रहते थे।
- नई राजधानी या नई दिल्ली के स्थापत्य का काम एडविन लैंडसिर लुटियन और हरबर्ट बेकर को सौंपा गया।
- वाइसरीगल लॉज वायसराय का पहला निवास बना, इसे बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय (1922 ई.) बना दिया गया।
- लुटियन के ज़िम्मे नई दिल्ली शहर एवं गवर्नमेंट हाउस और हरबर्ट बेकर के ज़िम्मे सचिवालय के दो हिस्से (नॉर्थ और साउथ ब्लॉक) और काउंसिल हाउस को तैयार करने का भार आया।
राष्ट्रपति भवन (1929 ई.)
- वायसराय पैलेस (अब राष्ट्रपति भवन) के वास्तुकार एडविन लुटियन थे।
- लुटियन के सहयोगी मुख्य इंजीनियर ह्यूज कीलिंग व भारतीय सहयोगियों में हारून अल रशीद, सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभा सिंह (अंग्रेज़ी लेखक खुशवंत सिंह के पिता) शामिल थे।
- इस विशाल भवन में चार मंज़िलें और 340 कमरे हैं।
- लाल बलुआ पत्थर से निर्मित राष्ट्रपति भवन के मुख्य गुम्बद को साँची के बौद्ध स्तूप और जालियों को मुगल स्थापत्य कला की तर्ज़ पर बनाया गया है।
- राष्ट्रपति भवन की एक अन्य विशेषता इसके स्तंभों में भारतीय मंदिरों की घंटियों का प्रयोग है।
- राष्ट्रपति भवन रायसीना पहाड़ी पर बनाया गया दिल्ली का सबसे उँचा भवन है।
संसद भवन संपदा (1927 ई.)
- इसके अंतर्गत संसद भवन, संसदीय ज्ञानपीठ (ग्रंथालय), संसदीय सौंध और इसके आस-पास के विस्तृत लॉन आदि शामिल हैं।
- इसके वास्तुकार एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर थे और इसे बनाने में 6 वर्ष (1921-27 ई.) लगे।
- इसके विशाल वृत्ताकार क्षेत्र में लोकसभा, राज्यसभा और पूर्ववर्ती ग्रंथालय (पहले यह प्रिंसेस चैम्बर था) हैं और इनके मध्य उद्यान प्रांगण है।
- केन्द्रीय कक्ष गोलाकार है और इसके 98 फुट व्यास वाले गुंबद को विश्व के भव्यतम गुंबदों में से एक माना जाता है।
- 15 अगस्त, 1947 ई. को ब्रिटिश शासन द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरण तथा संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान का निर्माण इसी कक्ष में हुआ था।
इंडिया गेट
- यह एक युद्ध स्मारक है जिसका निर्माण 1931 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध व अफगान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में किया गया।
- 43 मीटर उँचे इस विशाल द्वार का निर्माण राजपथ दिल्ली में लाल बलुआ पत्थर से हुआ है, जिसके वास्तुकार लुटियन थे।
- स्थापत्य की दृष्टि से इंडिया गेट की तुलना ट्रिम्फल आर्क, रोम; आर्क द ट्रिम्पे (पेरिस) तथा गेट-वे-ऑफ इंडिया से की गई है।
- कनॉट प्लेस (मौजूदा राजीव चौक) का डिज़ाइन ‘राबर्ट टोर रसेल’ ने तैयार किया था।