19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारत की व्यापार प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। इन परिवर्तनों और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके प्रभावों का वर्णन करें।
29 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोणः • सर्वप्रथम अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों में परिवर्तन का मूल कारण बताएँ। • भारत के प्रमुख क्षेत्रों, जैसे कृषि, उद्योग, आत्मनिर्भरता, आयात-निर्यात आदि पर क्या प्रभाव पड़ा? विश्लेषण कीजिये। • निष्कर्ष। |
उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्द्ध कई मायनों में प्रमुख था। ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप वहाँ सूती कपड़ों आदि की मशीनें स्थापित हो चुकी थीं। अब भारत को कच्चे माल के उत्पादक एवं मशीनी उत्पाद के बाज़ार के रूप में देखा जाने लगा था। इसके लिये अंग्रेज़ों ने भारत में रेलवे लाइनें बिछाईं ताकि इसका एकमात्र उद्देश्य भारत के कच्चे माल को आसानी से बंदरगाहों तक पहुँचाया जा सके।
भारत परंपरागत रूप से कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर था। लेकिन अब अंग्रेज़ी पूंजीपतियों ने भारत में व्यापारिक फसलों, जैसे चाय, कॉफी आदि के बागान लगाने शुरू कर दिये। अन्य औद्योगिकता महत्त्व की फसलें जैसे- नील आदि की खेती को अनिवार्य कर दिया गया। इससे परंपरागत कृषि का ढाँचा ही टूट गया।
भारत में कुटीर उद्योग से लोगों को रोजगार भी मिलता था और उनकी मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी हो जाती थीं। अब विलायत से बने उत्पादों से भारतीय बाज़ार पट गए। इससे न सिर्फ भारतीय उद्योगों का अंत हुआ बल्कि विलायती सामान खरीदने के कारण भारत का बहुत सारा पैसा विदेशी पूंजीपतियों के हाथ में गया।
कुछ भारतीय आर्थिक विशेषज्ञों ने अंग्रेज़ों की इस नीति को भारतीय सम्पत्ति की लूट भी कहा है। स्पष्ट रूप से अब भारत विदेशी आयात पर निर्भर होता चला जा रहा था। यह भारत के व्यापारिक इतिहास में पहला अवसर था। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को पंगु कर दिया, जिसका परिणाम अगले कई दशकों तक परिलक्षित होता रहा।