‘जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान में ‘जलवायु वित्तीयन’ की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता; टिप्पणी करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• भूमिका।
• जलवायु वित्तीयन क्या है?
• वित्तीयन तंत्र।
• जलवायु वित्तीय में निहित मुख्य मुद्दे।
• निष्कर्ष।
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यूनाइटेड नेशंस प्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, क्योटो प्रोटोकॉल तथा पेरिस समझौते में सभी देशों के मध्य यह आम सहमति बनी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु जलवायु वित्तीयन आवश्यक है। ऐसे में विकसित देश विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करेंगे।
विकासशील देशों को धन उपलब्ध कराने हेतु निम्नलिखित वित्तीय तंत्र स्थापित किये गए हैं:
- वैश्विक पर्यावरण सुविधा: यह वर्ष 1994 में कन्वेंशन के प्रभावी होने के बाद से वित्तीय तंत्र की परिचालनात्मक इकाई के रूप में कार्य कर रहा है।
- वर्ष 2009 में COP-15 के कोपेनहेगेन एकॉर्ड के तहत विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों की ‘व्यापक, नवीन तथा पर्याप्त वित्तीयन’ उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई; जिसके अंतर्गत ‘‘व्यापक विविध स्रोतों, सार्वजनिक तथा निजी, द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय, वित्त के वैकल्पिक स्रोतों सहित’’ विकासशील देशों को वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर वित्त उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था।
- इसके अतिरिक्त, सरकारें ग्रीन क्लाइमेट फंड की स्थापना के लिये प्रतिबद्ध है, जिसके माध्यम से इस वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्राप्त होना चाहिये।
- COP-16 के दौरान पक्षकारों द्वारा ग्रीन क्लाइमेट फंड की स्थापना की गई और COP-17 में इसे वित्तीय तंत्र के परिचालानात्मक इकाई के तौर पर इसे तंत्र के परिचालनात्मक इकाई के रूप में नामित किया गया।
- COP-16 में पक्षकारों ने कन्वेंशन के वित्तीय तंत्र के संबंध में अपने दायित्वों का निर्वहन करने के क्रम में स्टैंडिंग कमेटी ऑन फाइनेंस स्थापित करने का निर्णय लिया है। उदाहरण- विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्त उपलब्ध कराने की प्रक्रिया का द्विवार्षिक मूल्यांकन किया जाना।
जलवायु वित्तीयन में निहित मुख्य मुद्दे:
वित्त पोषण की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
- वर्तमान में अमेरिका ने GCF (Green Climate Fund) के वित्तपोषण को रोक दिया गया है।
- अडॉप्टेशन वॉच रिपोर्ट के अनुसार OECD देशों द्वारा फंडिंग को तुलनात्मक रूप से कम कर दिया गया है।
- यद्यपि कोटोविस के COP-24 के दौरान 2025 के लक्ष्यों हेतु 2020 से औपचारिक चर्चा शुरू करने पर सहमति व्यक्त की गई थी, तथापि अभी तक वार्ता की शुरुआत नहीं हो पाई है।
- COP-15 के 10 वर्षों के बाद भी, GCF हेतु वित्तीयन का ढाँचा क्या होगा, इस पर सार्वभौमिक सहमति नहीं बन पाई है।
- सार्वजनिक वित्तीयन को किस प्रकार जुटाया जाए; इसका प्रबंधन कैसे किया जाए, इस पर किसी सार्वभौमिक सहमति का अभाव है।
- विगत दो वर्षों में विकसित देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए जलवायु वित्तीन हेतु तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु नियमों का अभाव है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि वित्तीयन व्यवस्था में सुधार हेतु कुछ नवीन प्रयासों तथा प्रावधानों की आवश्यकता है-
- जैसे कि भारत ने भी कहा कि प्रक्रियाओं के उचित सत्यापन हेतु तंत्र विकसित किया जाए, जिसमें विकासशील देशों का परामर्श ज़रूरी हो।
- जितना भी वित्त प्राप्त हुआ है उसके उपयोग का प्रति दो वर्ष में ऑडिट किया जाना चाहिये।
- अनुमानित वित्त पोषण प्रावधानों से संबंधित रिपोर्टिंग प्रावधानों को मज़बूत बनाए जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्षत: ‘जलवायु वित्तीयन’ के सफल संचालन हेतु नवीन प्रबंधन तंत्र का विकास किया जाना आवश्यक है, साथ ही इसकी सफलता इस बात में निहित है कि विकसित देशों द्वारा इसके महत्त्व को समझा जाए।