‘भारत और पाकिस्तान की वर्तमान दशाओं का मूल कारण वास्तव में नेहरू तथा जिन्ना के व्यक्तित्व में ढूंढा जा सकता है; टिप्पणी कीजिये।
25 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासप्रत्येक राष्ट्र का भविष्य उसके नेतृत्वकर्त्ताओं के व्यक्तित्व में अवश्य प्रतिबिंबित होता है, भारत और पाकिस्तान भी इसके अपवाद नहीं हैं। जैसे-जैसे भारत का स्वतंत्रता संघर्ष निर्णायक स्तर पर पहुँचता गया वैसे-वैसे जिन्ना तथा नेहरू के व्यक्तित्व तथा कृतित्व ने दोनों देशों को प्रभावित किया।
सर्वप्रथम यदि जिन्ना के व्यक्तित्व पर गौर करें तो उनमें एक वकील की कुशलता, एक राजनीतिज्ञ का चातुर्य तथा अवसरों के दक्षतापूर्ण प्रयोग की निपुणता अवश्य थी, किंतु जिन्ना में एक नेता की वह संगठनिक क्षमता नहीं दिखाई देती जो एक राष्ट्र को एकीकृत रखते हुए उसके संस्थापना के मूल्यों को अक्षुण्ण बना सके।
ध्यातव्य है कि धर्म और राजनीति के गठजोड़ को आधार बनाकर असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन का विरोध करने वाले जिन्ना आगे चलकर धर्म आधारित राष्ट्र के ही समर्थक बने। जिन्ना के सिद्धांतों पर गठित आधुनिक इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान न तो अपनी संप्रभुता, न ही अपनी धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को अक्षुण्ण रख सका। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलगाव यह सिद्ध करता है कि एक आधुनिक राष्ट्र का गठन धर्म आधारित राष्ट्रवाद से नहीं बल्कि समावेशी स्वीकार्यतावादी एवं बहुसांस्कृतिक मूल्यों से होता है। इसी तरह कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था बिना लोकतांत्रिक मूल्यों को आत्मसात किये तानाशाही एवं सैन्य तख्ता पलट में परिवर्तित हो जाती है।
जिन्ना के बरक्स जब हम नेहरू के व्यक्तित्व पर नज़र डालते हैं तो हम पाते हैं कि वे स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान अर्जित गांधीवादी मूल्यों के स्वतंत्र भारत में वास्तविक संवाहक बनते हैं। नेहरू की बहुसांस्कृतिक दृष्टि संतुलित राष्ट्रवाद का निर्माण करती है, जिसकी झलक धर्मनिरपेक्ष भारतीय राष्ट्रवाद में आज भी विद्यमान है। नेहरू की अंतर्राष्ट्रीयतावादी मानवीय जीवन दृष्टि उनके पंचशील एवं गुटनिरपेक्षता के माध्यम से भारत की विदेश नीति एवं ‘सॉफ्टपावर’ को आज भी मज़बूत आधार प्रदान करती है।
नेहरू ने आधुनिक, समग्रतावादी एवं आत्मनिर्भरतापरक प्रयासों से भारत को न सिर्फ आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से मज़बूत किया है बल्कि भारत की धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी अक्षुण्ण बनाये रखा है। नवस्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नेहरू ने अपने प्रथम भाषण में अशिक्षा, भुखमरी तथा सांप्रदायिकता को भारत का प्रथम शत्रु माना तो दूसरी ओर जिन्ना ने कश्मीर को अपने लिये चुनौती मानकर कबीलाई युद्ध प्रारंभ कर दिया।
निष्कर्षत: साथ ही स्वतंत्र हुए दोनों राष्ट्रों के प्रारंभिक नेतृत्वकर्ताओं के व्यक्तित्व तथा कृतित्व ने दोनों देशों को गहनता से प्रभावित किया है। एक सैन्य शक्ति के रूप में भारत को चुनौती देने में सक्षम पाकिस्तान गैर-लोकतांत्रिक एव गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के प्रभाव में ‘डीप-स्टेट’, बनने के मुहाने पर खड़ा है। मानव विकास, लोकतांत्रिक मूल्यों, स्वतंत्र विदेश नीति, सुरक्षित संप्रभुता, संगठित राष्ट्र एवं धर्मनिरपेक्षता के मूल्य पर नेहरूवादी दृष्टिकोण वर्तमान में जिन्ना के दृष्टिकोण से ज़्यादा प्रभावी सिद्ध हुआ। इसी क्रम में ‘ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन’ में भारत का प्रवेश कहीं-न-कहीं नेहरूवादी दृष्टिकोण की प्रबल प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।