केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तेल तथा गैस फर्मों को अपतटीय एवं तटवर्ती उत्खनन अन्वेषणों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने से छूट देने हेतु एक अधिसूचना जारी की है। भारत में अपतटीय एवं तटवर्ती उत्खनन की चर्चा करते हुए उत्खनन के पर्यावरणीय प्रभावों पर प्रकाश डालें।
24 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • अपतटीय एवं तटवर्ती उत्खनन की चर्चा। • उत्खनन के पर्यावरणीय प्रभाव। |
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 में 16 जनवरी, 2020 को संशोधित करते हुए तेल और गैस फर्मों को अपतटीय एवं तटवर्ती उत्खनन अन्वेषणों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने से छूट देने हेतु एक अधिसूचना जारी की है।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनके संभावित प्रभाव के आधार पर परियोजनाओं को 'ए' और 'बी' श्रेणियों में विभाजित किया गया है। श्रेणी ‘ए’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को MoEF&CC से पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करनी होती है। जबकि श्रेणी ‘बी’ के तहत आने वाली परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंज़ूरी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण से प्राप्त करनी होगी।
अब अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस अन्वेषण तथा अपतटीय और तटवर्ती तेल विकास एवं उत्पादन संबंधी परियोजनाओं को अलग-अलग वर्गीकृत कर दिया गया है। ध्यातव्य है कि अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस के अन्वेषण के संबंध में सभी परियोजनाओं को अब B2 श्रेणी परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
गौरतलब है कि एक हाइड्रोकार्बन ब्लॉक के रूप में अपतटीय या तटवर्ती ड्रिलिंग साइट के विकास को श्रेणी ए के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ध्यातव्य है कि इसके पहले सभी अपतटीय और तटवर्ती तेल एवं गैस अन्वेषण, विकास और उत्पादन परियोजनाओं को पहले श्रेणी ए परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिनके लिये केंद्र सरकार से पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती थी।
भारत में अपतटीय एवं तटवर्ती उत्खनन :
विभिन्न उत्खनन विधियों का उपयोग आमतौर पर पृथ्वी से तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों को निकालने के लिये किया जाता है।
इस प्रकार के कदम के निहितार्थ देखें तो अमेरिका-ईरान संघर्ष को देखते हुए देश के तेल एवं गैस की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में यह महत्त्वपूर्ण कदम है। इस कदम से तेल आयात पर राजकोषीय बजट के खर्च को कम किया जा सकता है। इसके अलावा पश्चिम एशिया की अस्थिर प्रकृति और अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों के कारण, भारत तेल आपूर्ति के लिये अन्य विकल्प की खोज में है। इस अधिसूचना को घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर जारी किया गया है।
उत्खनन के पर्यावरणीय प्रभाव:
वर्तमान में वैश्विक समुदाय द्वारा सतत और संपोषणीय विकास की अवधारणा पर ज़ोर दिया जा रहा है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम प्रयोग करते हुए अधिकतम विकास करना है। इसलिये इस प्रकार के निर्णय अल्पकालिक दृष्टि से तो लाभदायक हो सकते हैं लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर भारत को अपनी ऊर्जा नीतियों के निर्माण हेतु नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर निर्भरता बढ़ानी होगी। इसलिये भारत को अपनी पर्यावरणीय और संसाधनों से संबंधी प्राथमिकताओं को तय करते हुए एक दीर्घकालिक नीति निर्माण के साथ नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ानी चाहिये जिससे ऊर्जा संबंधी समस्याओं का स्थायी समाधान किया जा सके।