क्षेत्रवाद की भावना बढ़ने के पीछे निहित कारणों की चर्चा करते हुए बताएं कि क्या क्षेत्रवाद प्रत्येक रूप में राष्ट्र विरोधी है?
24 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • क्षेत्रवाद की भावना बढ़ने के पीछे निहित कारणों की चर्चा। • क्या क्षेत्रवाद प्रत्येक रूप में राष्ट्र विरोधी है? |
किसी राज्य अथवा क्षेत्र पर सांस्कृतिक वर्चस्व तथा भेदभाव मूलक व्यवहार क्षेत्रवाद को उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वास्तव में जब एक राज्य अथवा क्षेत्र के हितों को पूरे देश अथवा दूसरे क्षेत्रों या राज्यों के विरुद्ध पेश करने की कोशिश की जाती है तो क्षेत्रवाद का जन्म होता है।
भारत में क्षेत्रवाद की समस्या आज़ादी के बाद से ही विद्यमान रही जहाँ भाषा, संस्कृति व भौगोलिक आधारों पर टकराव देखने को मिला। इस संबंध में सरकारों द्वारा कुछ प्रयासों के माध्यम से समस्या का हल खोजने का प्रयास किया गया जैसे भाषायी आधार पर कुछ राज्यों का पुनर्गठन लेकिन इस समस्या का पूर्ण समाधान न हो सका।
क्षेत्रवाद हेतु ज़िम्मेदार कारक:
उपरोक्त कारणों से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है। परिणामस्वरूप विभिन्न राज्यों में आर्थिक, राजनीतिक तथा मनोवैज्ञानिक संघर्ष बढ़ता चला जाता है। इससे देश की एकता, अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न होने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण तथा विकास में बाधाएँ पहुँचती हैं।
विकास की असमानता के कारण कई बार क्षेत्रों के मध्य तनाव का माहौल निर्मित हो जाता है। परिणामस्वरूप अलग राज्य की मांग व स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना को लेकर आंदोलन चलाएं जाते हैं।
उपरोक्त विश्लेषक से स्पष्ट होता है कि क्षेत्रवाद राष्ट्रवाद की भावना का प्रतिकूल है परंतु भारत के नीति निर्माताओं ने भाषा, धर्म तथा असमान विकास के आधार पर क्षेत्रवाद की बलवती होती भावना पर अपनी सूझबूझ तथा नीतियों से अंकुश लगाकर क्षेत्रवाद को कभी भी राष्ट्रवाद का विरोधी नहीं बनने दिया।