हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत की धीमी आर्थिक वृद्धि हेतु किन तत्त्वों को ज़िम्मेदार माना है। IMF द्वारा प्रस्तुत नीतिगत सुधारों की चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
• भूमिका।
• IMF द्वारा धीमी आर्थिक वृद्धि के क्या कारण बताये गये हैं?
• IMF द्वारा अनुशंसित नीतिगत उपाय क्या हैं ?
• निष्कर्ष
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हाल ही में, IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने उल्लेख किया कि वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था में
‘‘आर्थिक गिरावट’’(economic slowdown) की स्थिति उत्पन्न हुई है तथा यह सुझाव दिया है कि भारत को इसके समाधान हेतु तत्काल नीतिगत कार्रवाई करनी चाहिये।
IMF के अनुसार धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण:
- कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की कमज़ोरी स्थिति: विगत वर्ष के IL&FS (इंफ्रास्ट्रक्चर लीज़िग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़) संकट के पश्चात् NBFCs के ऋण विस्तार में अकस्मात कटौती देखने को मिली, जिसके परिणामस्वरूप ऋण के व्यापक आधार में भी कमी हो गई।
- निम्न उपभोग मांग: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में कमज़ोर आय वृद्धि ने निजी उपभोग को नकारात्मक तौर पर प्रभावित किया है।
- अनिश्चित कॉर्पोरेट एवं पर्यावरणीय विनियामक: वित्तीय क्षेत्र की कठिनाइयों सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और व्यावसायिक विश्वास में कमी के कारण निजी निवेश बाधित हुआ है।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसे कुछ संरचनात्मक सुधारों के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे।
IMF द्वारा अनुशंसित नीतिगत उपाय
- वित्तीय क्षेत्रक: IMF के अनुसार अल्पावधि में निम्नलिखित सुधारों की आवश्यकता है, जैसे-
- वाणिज्यिक बैंकों, कॉर्पोरेट क्षेत्रक तथा आवास वित्त कंपनियों सहित NBFCs की बैलेंस शीट संबंधी मुद्दों का समाधान करना।
- विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में निजी मांग पर ऋण की कमी के प्रभावों के संबंध में बेहतर समझ विकसित करने हेतु लघु NBFCs के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है।
- राजकोषीय नीति संबंधी सुझाव:
- अल्पावधि में व्यय की संरचना एवं GST को तर्कसंगत बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- मध्यम अवधि के दौरान घरेलू स्तर पर राजस्व जुटाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जैसे कि छूट को समाप्त करके व्यक्तिगत आयकर संग्रहण को बढ़ाना, करदाताओं के लिये निर्धारित न्यूनतम सीमा में कमी करना, शीर्ष आय-अर्जकों के योगदान को बढ़ाना, सब्सिडी पर व्यय में कमी करना तथा राजकोषीय पारदर्शिता में वृद्धि करना और इस प्रकार अनिश्चिततओं में कमी करने की आवश्यकता है।
- मैद्रिक नीति संबंधी सुझाव: विशेष रूप से यदि आर्थिक गिरावट (सुस्ती) जारी रहती है तो नीतिगत दरों में और कटौती की जानी चाहिये।
- संरचनात्मक सुधार:
- बैंकिंग क्षेत्र में ऋण आवंटन की दक्षता में सुधार करने एवं शासन संबंधी सुधारों द्वारा अर्थव्यवस्था के प्रति विश्वास में वृद्धि किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।
- प्रतिस्पर्द्धा एवं शासन में वृद्धि करने हेतु श्रम, भूमि व उत्पाद-बाज़ार में सुधार करना।
- मानव पूंजी (शिक्षा एवं स्वास्थ्य) में सुधार करना।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि उपरोक्त नीतिगत उपायों को अपनाकर भारत अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती से कुशलतापूर्वक उबर सकता है तथा अर्थव्यवस्था में पुनः तीव्र विकास सुनिश्चित कर सकता है।