हाल ही में राज्यसभा के एक सदस्य द्वारा ‘दो बच्चों की नीति’ से संबंधित एक निजी विधेयक या गैर-सरकारी विधेयक सदन में प्रस्तुत किया गया है। विधेयक में निहित प्रमुख बिंदुओं की चर्चा करते हुए ‘दो बच्चों की नीति’ के पक्ष तथा विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका।
• ‘दो बच्चों की नीति’ से संबंधित एक निजी विधेयक का परिचय।
• इसके प्रमुख बिंदु।
• पक्ष तथा विपक्ष के बिंदु।
• निष्कर्ष।
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हाल ही में राज्यसभा के एक सदस्य द्वारा’ दो बच्चों की नीति’ से संबंधित एक निजी विधेयक सदन के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसमें उल्लिखित कुछ प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं-
- इस संविधान संशोधन विधेयक में उन लोगों के लिये कराधान, शिक्षा और रोज़गार को प्रोत्साहन दिए जाने का प्रस्ताव है जो अपने परिवार का आकार दो बच्चों तक सीमित रखते हैं।
- विधेयक में संविधान के भाग-IV में एक नए प्रावधान को शामिल करने की मांग की गई है, जो ऐसे लोगों से सभी रियायतें वापस लेने से संबंधित है जो ‘छोटे-परिवार’ के मानदंड का पालन करने में विफल रहते हैं।
- विधेयक संविधान में अनुच्छेद-47 के बाद अनुच्छेद-47A के सम्मिलन का प्रस्ताव करता है।
- प्रस्तावित अनुच्छेद 47A के अनुसार, “राज्य, बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने की दृष्टि से छोटे परिवार को बढ़ावा दें। जो लोग अपने परिवार को 2 बच्चों तक सीमित रखते हैं उन्हें कर, रोज़गार और शिक्षा आदि में प्रोत्साहन देकर बढ़ावा दिया जाए और जो लोग इस नीति का पालन न करें उनसे सभी तरह की छूट वापस ले ली जाए।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व मार्च 2018 में ‘दो बच्चों की नीति’ की आवश्यकता पर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि नीति निर्माण न्यायालय का कार्य नहीं है। यह संसद से संबंधित मामला है और न्यायालय इसमें दखल नहीं दे सकता।
नीति के पक्ष में तर्क
- जनसंख्या बढ़ने से बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य और प्रदूषण जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। इसलिये ‘दो बच्चों की नीति’ उपरोक्त समस्याओं के हल की दिशा में एक कारगर उपाय सिद्ध हो सकती है।
- वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी दोगुनी हो जाएगी, जिसके चलते शहरी सुविधाओं में सुधार किये जाने और सभी को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती होगी।
- आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में देखें जा सकते हैं ।
- जहाँ एक ओर जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है. तो वहीं दूसरी ओर कृषि योग्य भूमि तथा खाद्य फसलों के उत्पादन में कमी हो रही है जिससे लोगों के समक्ष खाद्यान्न का संकट उत्पन्न हो रहा है।
नीति के विपक्ष में तर्क
- नीति के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर ज़बरन नसबंदी और गर्भपात जैसे उपाय अपनाए जाने की भी आशंका है।
- इस नीति से वृद्ध लोगों की जनसंख्या बढ़ेगी तथा वृद्ध लोगों को सहारा देने के लिये युवा जनसंख्या में कमी आ आयेगी।
- इस नीति से हम जनसांख्यिकीय लाभांश की अवस्था को खो देंगे।
जनसंख्या नियंत्रण के अन्य उपाय:
- आयु की एक निश्चित अवधि में मनुष्य की प्रजनन दर अधिक होती है। यदि विवाह की आयु में वृद्धि की जाए तो बच्चों की जन्म दर को नियंत्रित किया जा सकता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा लोगों के अधिक बच्चों को जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना।
- भारतीय समाज में किसी भी दंपत्ति के लिये संतान की प्राप्ति को आवश्यक समझा जाता है तथा इसके बिना दंपत्ति को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है, यदि इस सोच में बदलाव किया जाना आवश्यक है।
निष्कर्षतः जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इस पर नियंत्रण के लिये कानूनी तरीका एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय अपनाकर जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास करना चाहिये। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये।