भारत सरकार ने कृषि निर्यात नीति-2018 के तहत कृषि क्लस्टर को बढ़ावा देने का फैसला लिया है। कृषि क्लस्टर से क्या आशय है? भारत में कृषि क्लस्टर की संभावनाओं तथा चुनौतियों की चर्चा करते हुए समाधान के बिंदु प्रस्तुत करें।
19 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • कृषि क्लस्टर क्या है ? • भारत में कृषि क्लस्टर की संभावनाएं। • चुनौतियाँ। |
बोसवर्थ और ब्रून के अनुसार, "उद्योगों की भौगोलिक विशेषता जो कि स्थान विशेष की परिस्थितियों के माध्यम से अधिक लाभ प्राप्त करती है" क्लस्टर कहलाती है। क्लस्टर से जुड़े उद्योगों और अन्य संस्थाओं की एक शृंखला होती है जिसमें संबंधित उद्योग के घटक, मशीनरी, सेवा और विशेष बुनियादी ढाँचा शामिल होता है। क्लस्टर अक्सर चैनलों के माध्यम से ग्राहकों, कंपनियों के साथ-साथ उद्योग विशेष से संबंधित कौशल एवं प्रौद्योगिकियों के मध्य एकीकृत दृष्टिकोण स्थापित करता है।
क्लस्टर आधारित कृषि:
विकासशील देशों में टिकाऊ विकास की सबसे बड़ी संभावना कृषि क्षेत्र में निहित है। यहाँ पर गरीबी व्यापक और खराब स्वरूप में विद्यमान है तथा किसान छोटे पैमाने पर सीमित क्षेत्रों में कृषि करते हैं। विकासशील देशों के ये किसान कम मार्जिन के "संतुलन के चक्र" (Cycle of Equilibrium) से घिरे हैं जहाँ पर सीमित क्षमता और कम निवेश के चलते कम उत्पादकता, कम बाज़ार उन्मुखीकरण जैसी परिस्थितियाँ व्याप्त हैं। इस चक्र को दीर्घकालीन प्रतिस्पर्द्धा के माध्यम से ही तोड़ा जा सकता है।
भारत में कृषि क्लस्टर:
भारत भौगोलिक, जलवायवीय और मृदा संबंधी विविधता वाले विशाल देशों में से एक है इसीलिये भारत के कृषि स्वरूप में पर्याप्त विविधता है। भारत के विभिन्न क्षेत्र किसी विशेष फसल की कृषि के लिये आदर्श स्थल हैं, उदाहरणस्वरूप गुजरात और महाराष्ट्र में कपास की फसल संबंधी आदर्श स्थितियाँ हैं। इसी प्रकार किसी फसल विशेष के संबंध में भी स्थानीय विविधता है, जैसे- मूँगे की विभिन्न किस्मों के लिये कर्नाटक, झारखंड और असम में विशेष परिस्थितियाँ पाई जाती हैं। धान की अमन, ओसों जैसी प्रजातियाँ विभिन्न कृषि क्षेत्रों में बेहतर उत्पादन करती हैं।
भारत में कृषि अर्थव्यवस्था के क्षेत्रीकरण संबंधी पूर्व अध्ययनों की जाँच करने के बाद योजना आयोग द्वारा यह सिफारिश की गई थी कि कृषि-आयोजन संबंधी नीतियाँ कृषि-जलवायु क्षेत्रों के आधार पर तैयार की जानी चाहिये। इसी प्रकार संसाधन विकास के लिये देश को कृषि-जलवायु विशेषताओं, विशेष रूप से तापमान और वर्षा सहित मृदा कोटि, जलवायु एवं जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर पंद्रह कृषि जलवायु क्षेत्रों में बाँटा गया है।
इस प्रकार भारत की कृषि जलवायु विविधता को देखते हुए भारत में क्लस्टर आधारित कृषि की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में खाद्य और कृषि संगठन द्वारा महाराष्ट्र में क्लस्टर से संबंधित कई प्रतिस्पर्द्धा तथा कमी के कारणों की समीक्षा की।
भारत में इस प्रकार की कृषि से संभावनाएँ:
वे देश जो अधिक खाद्यान्न उत्पादन करते हैं, की अपेक्षा भारत में अधिक कृषि क्षेत्र है परंतु भारत में विस्तृत कृषि की कमी के कारण उत्पादन के अपेक्षित स्तर को प्राप्त नही किया जा सका है। हरित क्रांति का प्रभाव भी भारत के सीमित क्षेत्रों को ही लाभान्वित कर पाया है, इसी परिप्रेक्ष्य में भारत में विद्यमान सीमांत एवं छोटी जोत वाले कृषि क्षेत्र के मध्य क्लस्टर आधारित कृषि की असीम संभावनाएँ हैं।
विभिन्न कृषि क्षेत्रों में आदर्श फसल और उससे संबंधित बुनियादों बातों को ध्यान में रखते हुए विशेष विनियामक रणनीति के माध्यम से कृषको की आय दुगुनी करने संबंधी प्रयोजनों में बेहतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त भारत में कृषकों की खाद्यान्न से संबंधित कृषि अवधारणा को व्यावसायिक कृषि में बदल कर स्थानीय प्रवास, रोज़गार और स्थानीय व्यवसाय जैसे सुधारों के माध्यम से कृषि पर निर्भर 50% जनसंख्या की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ आर्थिक विकास में कृषि प्रासंगिक भूमिका निभा सकती है क्योंकि भारत अभी भी विकासशील व कृषि प्रधान देश है।
समस्याएँ:
भारत में कृषि परंपरागत दृष्टिकोण के आधार पर खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये की जाती है जिसमें कौशल, ज्ञान और नवीन तकनीकों का अभाव देखा जाता है। इसके अतिरिक्त कृषकों के समक्ष कृषि एवं फसल संबंधी जानकारियों का अभाव जैसी सामान्य समस्याएँ हैं।
भारत में अभी भी समर्पित संस्थाओं, कृषि विशेष क्षेत्रों एवं अनुसंधानों तथा इन अनुसंधानों की जानकारी का कृषकों की पहुँच से दूरी जैसे कारक इस क्षेत्र की सफलता में बाधक बने हैं।
खाद्य और कृषि संगठन द्वारा हाल के वर्षों में चिली और अर्जेंटीना जैसे देशों में इस प्रकार की कृषि के सफल प्रयोग किये गए हैं। इस प्रकार की कृषि के परिणामस्वरूप वहाँ पर कृषि उत्पादन और कृषकों की आय में बेहतर सुधार देखा गया हैं।
समाधान:
भारत में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित समर्पित शोध संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिये इसके अतिरिक्त पहले से स्थापित संस्थानों के कार्य निष्पादन में अपेक्षित सुधार किया जाना चाहिये। इस प्रकार के संस्थानों के शोध के आधार पर पाठ्यक्रम एवं तकनीकी ज्ञान का भी प्रसार किया जाना चाहिये।
किसी क्षेत्र से संबंधित स्वयं सहायता समूहों (SHG) एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से सामान्य और तकनीकी जानकारी का प्रसार किया जाए इसके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिये।
क्षेत्र विशेष पर समर्पित एप भी बनाए जाने चाहिये ताकि सभी प्रकार की जानकारियों को अद्यतन किया जा सके। इस प्रकार के एप के परिचालन संबंधी क्रिया-कलापों हेतु ग्राम पंचायत और स्थानीय स्तर पर नियमित कार्यशालाओं का किया जाना चाहिये।
वित्तीय प्रवाह, अवसंरचना और जागरूकता के साथ-साथ बाज़ार पहुँच जैसी अन्य आवश्यकताओं को पूरा कर भारत अपनी श्रम शक्ति और जनसंख्या का बेहतर प्रयोग अपने आर्थिक एवं मानव विकास के लिये कर सकता है।