एक सुव्यवस्थित डिजिटल भू-रिकॉर्ड प्रणाली भारत में भू-स्वामित्व की समस्याओं का बेहतर समाधान प्रस्तुत करती है।’ चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका।
• भूमि स्वामित्त्व से आशय।
• समस्याएं।
• भूमि डिजिटलीकरण के लाभ।
• अन्य उपाय।
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भूमि स्वामित्व (लैंड टाइटल) एक ऐसा दस्तावेज़ है, जो भूमि या अचल संपत्ति का स्वामित्व निर्धारित करता है। स्पष्ट भूमि स्वामित्व होने से संपत्ति पर किसी और के दावों से स्वामित्व धारक के अधिकारों को सुरक्षा प्राप्त होती है।
भारत में, भू-स्वामित्व विभिन्न अभिलेखों, जैसे विक्रय कानूनी दस्तावेज़ (जो पंजीकृत होता है), संपत्ति कर दस्तावेज़, सरकारी सर्वेक्षण अभिलेख आदि द्वारा निर्धारित होता है। हालाँकि, भारत में विभिन्न कारणों से भूमि स्वामित्व अस्पष्ट बना हुआ है, जैसे- ज़मींदारी प्रथा की विरासत से जनित समस्याएँ, केंद्र और राज्य (भूमि राज्य सूची का एक विषय है) के मध्य नीतियों के कार्यान्वयन हेतु एकीकृत कानूनी ढाँचे का अभाव और भूमि अभिलेखों का खराब प्रशासन।
उपर्युक्त के कारण भूमि स्वामित्व से संबंधित विभिन्न कानूनी विवाद उत्पन्न हुए हैं। इसने कृषि तथा स्थावर संपदा (रियल एस्टेट) क्षेत्रक को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। उल्लेखनीय है कि इन समस्याओं ने सुस्पष्ट भूमि स्वामित्व एवं बेहतर रूप से संगठित डिजिटल भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण के महत्त्व को रेखांकित किया है।
एक सुव्यवस्थित डिजिटल भू रिकॉर्ड प्रणाली के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:
- मुकदमेबाज़ी और मुकदमों के बोझ में कमी: नीति आयोग के दस्तावेज़ के अनुसार, भूमि विवादों का निस्तारण करने में औसत 20 वर्ष का समय लग जाता है। बढ़ते भूमि विवादों के परिणामस्वरूप न्यायालयों के कार्यभार में वृद्धि होती है और यह इन विवादित भूमि स्वामित्व पर निर्भर क्षेत्रों एवं परियोजनाओं को प्रभावित करता है।
- कृषि ऋण को बढ़ावा: किसानों द्वारा ऋण प्राप्त करने हेतु भूमि को प्राय: कोलैटरल के रूप में उपयोग किया जाता है। यह पाया गया है कि विवादित या अस्पष्ट लैंड टाइटल, कृषि के लिये पूंजी और ऋण आपूर्ति को प्रभावित करते हैं।
- नई अवसंरचना का विकास: देश की अर्थव्यवस्था कृषि से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक में प्रवर्तित हो रही है। हालाँकि भूमि अभिलेखों को अद्यतन किये जाने जैसे संबंधी मुद्दों के कारण विभिन्न नई अवसंरचना परियोजनाएँ विलंबित हैं।
- शहरीकरण और आवासन: स्लम बस्तियों में निवास करने वाले लोगों को कोई स्पष्ट लैंड टाइटल या मालिकाना हक प्राप्त नहीं होता है। इसके अतिरिक्त चूंकि ऐसी बस्तियाँ अनधिकृत होती हैं, इसलिये उन्हें बुनियादी सेवाएँ उपलब्ध कराना शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के लिये कठिन होता है। अत: योजनाओं का सरल ऑनलाइन अनुमोदन और अधिभोग प्रमाणपत्र स्वामित्व की स्थिति के संबंध में स्पष्टता प्रदान करेगा।
- बेनामी लेनदेन पर नियंत्रण: अस्पष्ट स्वामित्व और गैर-अद्यतित भूमि अभिलेख, गैर-पारदर्शी तरीके से संपत्ति के लेनदेन को बढ़ावा देते हैं। वर्ष 2015 में वित्तीय मामलों की स्थायी समिति ने उल्लेख किया था कि बेनामी लेनदेन के माध्यम से काले धन के सृजन को भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण और उनके नियमित अद्यतन के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
- स्पष्ट और सुरक्षित अभिलेख: ये अभिलेख भ्रष्टाचार के उन्मूलन व धोखाधड़ी वाले संपत्ति सौदों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
- डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) : DILRMP का मुख्य उद्देश्य अद्यतित भूमि अभिलेखों, ऑटोमेटेड और स्वत: नामांतरण, लिखित और स्थानिक अभिलेखों के समेकन, राजस्व और रजिस्ट्रीकरण के मध्य अंत: संयोजकता की प्रणाली को आरंभ करना तथा वर्तमान विलेख रजिस्ट्रीकरण और परिकल्पित स्वामित्वाधिकार प्रणाली के स्थान पर स्वामित्वाधिकार गारंटी के साथ स्वामित्वाधिकार की प्रणाली आरंभ करना है।
- संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन कार्यरत भूमि संसाधन विभाग की वित्तीय व तकनीकी सहायता से इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाएगा।
- कार्यान्वयन की इकाई वे जिले होंगे जहाँ कार्यक्रम के तहत सभी गतिविधियाँ एकीकृत होंगी।
- भूमि परियोजना : यह कर्नाटक सरकार द्वारा तैयार की गई एक परियोजना है। यह कर्नाटक में सभी अभिलेखों को कंप्यूटरीकृत करने के लिये आरंभ की गई थी।
- भूधार : यह आंध्र प्रदेश सरकार की पहल है। इसके अंतर्गत प्रत्येक भूखंड को 11 अंकों का भूधार नंबर प्रदान किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप भूखंड से संबंधित विवरण की पहचान सरल हो जाएगी।
- महाभूलेख : यह डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित रसीद और भूमि रिकॉर्ड जारी करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार की एक पहल है।
भूमि अभिलेख के कंप्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण की योजना विगत 30 वर्षों से चल रही है। तथापि, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट (2015) से ज्ञात हुआ कि अभिलेखों के आधुनिकीकरण और कंप्यूटरीकरण की गति धीमी बनी हुई है। वर्ष 2008 से सितंबर 2017 तक, DILRMP के अधीन जारी की गई निधि के 64 प्रतिशत हिस्से का उपयोग किया जा चुका है।
भूमि अभिलेखों को प्रोत्साहित करने और बेहतर बनाने संबंधी कुछ उपायों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:
- नीति को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और इसके लिये आवंटित की जाने वाली केंद्रीय निधियों के संदर्भ में स्पष्ट मापदंड एवं जवाबदेही तंत्र की स्थापना करना।
- तकनीकी और वैधानिक समस्याओं के संबंध में सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं की पहचान करना तथा उन्हें प्रचारित करना।
- राज्यों के तकनीकी कर्मचारियों के मध्य आदान-प्रदान और संचार को बढ़ावा देना तथा राज्य स्तर पर प्रशासकीय परिवर्तन करना ताकि भूमि संबंधी आँकड़ों का व्यवस्थित रूप से संकलन तथा रखरखाव किया जा सके।