शीत युद्ध से आप क्या समझते हैं? इसके उद्भव के कारणों का परीक्षण करते हुए शीत युद्ध के दौरान घटित प्रमुख घटनाओं का विवरण दीजिये ।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• शीतयुद्ध क्या है ?
• उद्भव के कारण क्या रहें ?
• शीतयुद्ध के दौरान घटित प्रमुख घटनाएँ।
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शीतयुद्ध शब्द वाल्टर लिपमैन नामक विद्वान द्वारा गढ़ा गया। शीतयुद्ध शब्द से सोवियत संघ-अमेरिकी शत्रुतापूर्ण एवं तनावपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की अभिव्यक्ति होती है। शीतयुद्ध एक प्रकार का वाक् युद्ध था इसमें वैचारिक घृणा, राजनैतिक अविश्वास, कूटनीतिक जोड़-तोड़, सैनिक प्रतिस्पर्धा, जासूसी और मनोवैज्ञानिक युद्ध जैसे तत्त्व शामिल थे।
शीत युद्ध के कारण:
द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोगी देश (अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस) तथा सोवियत संघ ने धुरी शक्तियों (नाज़ी जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रिया) के विरुद्ध साथ मिलकर संघर्ष किया था। लेकिन विभिन्न कारणों से यह युद्धकालीन गठबंधन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साथ नहीं रह सका।
पॉट्सडैम सम्मेलन
- पॉट्सडैम सम्मेलन का आयोजन वर्ष 1945 में बर्लिन में अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ के बीच निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार करने के लिये किया गया था:
- पराजित जर्मनी में तत्काल प्रशासन की स्थापना।
- पोलैंड की सीमाओं का निर्धारण।
- ऑस्ट्रिया का आधिपत्य।
- पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की भूमिका।
- सोवियत संघ चाहता था कि पोलैंड के एक भाग (सोवियत संघ की सीमा से लगा क्षेत्र) को बफर ज़ोन के रूप में बनाए रखा जाए किंतु संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन इस मांग से सहमत नहीं थे।
- इसके साथ ही अमेरिका ने सोवियत संघ को जापान पर गिराए गए परमाणु बम की सटीक प्रकृति के बारे में कोई सूचना नहीं दी थी। इसने सोवियत संघ के अंदर पश्चिमी देशों की मंशा को लेकर एक संदेह पैदा किया जिसने गठबंधन संबंध को कटु बनाया।
ट्रूमैन सिद्धांत
- ट्रूमैन सिद्धांत की घोषणा 12 मार्च, 1947 को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन द्वारा की गई थी।
- ट्रूमैन सिद्धांत सोवियत संघ के साम्यवादी और साम्राज्यवादी प्रयासों पर नियंत्रण की एक अमेरिकी नीति थी जिसमें दूसरे देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करने जैसे विविध उपाय अपनाए गए।
- इतिहासकारों का मानना है कि इसी सिद्धांत की घोषणा से शीतयुद्ध के आरंभ की आधिकारिक घोषणा चिह्नित होती है।
आयरन कर्टेन
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ द्वारा स्वयं को और उसके आश्रित पूर्वी एवं मध्य यूरोपीय देशों को पश्चिम एवं अन्य गैर-साम्यवादी देशों के साथ खुले संपर्क से अलग रखने के लिये एक राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक अवरोध खड़ा किया गया जिसे ‘आयरन कर्टेन’ कहा गया।
- ‘आयरन कर्टेन’ शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा किया गया था।
- इस आयरन कर्टेन के पूर्व में वे देश थे जो सोवियत संघ से जुड़े थे या उससे प्रभावित थे, जबकि पश्चिम में वे देश थे जो अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोगी थे या लगभग तटस्थ थे।
शीत युद्ध की अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ:
बर्लिन की घेराबंदी:
- जैसे ही सोवियत संघ और सहयोगी देशों के बीच तनाव बढ़ा सोवियत संघ ने वर्ष 1948 में बर्लिन की घेराबंदी शुरू कर दी।
- बर्लिन की घेराबंदी सोवियत संघ द्वारा सहयोगी देशों के नियंत्रण वाले बर्लिन क्षेत्र में उनकी गतिशीलता को सीमित करने का एक प्रयास था।
- इसके अतिरिक्त 13 अगस्त, 1961 को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (पूर्वी जर्मनी) की साम्यवादी सरकार ने पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच एक काँटेदार बाड़ और कंक्रीट की दीवार (बर्लिन की दीवार) का निर्माण भी शुरू कर दिया।
- इसने मुख्य रूप से पूर्वी बर्लिन से पश्चिमी बर्लिन में बड़े पैमाने पर प्रवसन को रोकने के उद्देश्य को पूरा किया।
- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के लोगों को सीमा पार करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
- वर्ष 1989 में बर्लिन की दीवार के ध्वस्त होने से पहले तक यह अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक या स्मारक बना रहा।
मार्शल योजना बनाम कमिनफॉर्म:
- मार्शल योजना:
- वर्ष 1947 में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉर्ज मार्शल ने यूरोपीय पुनर्निर्माण कार्यक्रम का अनावरण किया जिसमें आवश्यकतानुसार आर्थिक और वित्तीय मदद की पेशकश की गई।
- ERP का एक उद्देश्य यूरोप के आर्थिक पुनर्निर्माण को प्रोत्साहन देना था। हालाँकि यह ट्रूमैन सिद्धांत का ही आर्थिक विस्तार था।
- कमिनफॉर्म:
- सोवियत संघ ने मार्शल योजना के संपूर्ण विचार की 'डॉलर साम्राज्यवाद' के रूप में भर्त्सना की।
- मार्शल योजना पर सोवियत प्रतिक्रिया के रूप में वर्ष 1947 में कमिनफॉर्म की नींव पड़ी।
- यह मुख्य रूप से पूर्वी यूरोप के देशों को एक साथ रखने के लिये एक संगठन था।
नाटो बनाम वारसा संधि:
- उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO)
- सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी किये जाने की घटना ने पश्चिम की सैन्य कमज़ोरी को प्रकट किया था जिससे वे निश्चित तौर पर सैन्य तैयारी करने को प्रेरित हुए।
- परिणामस्वरूप वर्ष 1948 में मुख्य रूप से पश्चिमी यूरोप के देशों ने युद्ध के मामले में सैन्य सहयोग का वादा करते हुए ब्रुसेल्स रक्षा संधि पर हस्ताक्षर किये।
- बाद में ब्रुसेल्स रक्षा संधि में अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली और नॉर्वे भी शामिल हो गए तथा अप्रैल 1949 में नाटो का गठन हुआ।
- नाटो देश इनमें से किसी एक पर भी हमले को सभी देशों पर हमले के रूप में देखने और अपने सैन्य बलों को एक संयुक्त कमान के तहत रखने पर सहमत हुए।
- वारसा संधि
- नाटो में पश्चिम जर्मनी के शामिल होने के तुरंत बाद ही सोवियत संघ और उसके आश्रित राज्यों के बीच वारसा संधि पर हस्ताक्षर किये गए।
- यह एक पारस्परिक रक्षा समझौता था जिसे पश्चिमी देशों ने पश्चिमी जर्मनी की नाटो सदस्यता के विरुद्ध सोवियत प्रतिक्रिया के रूप में देखा था।
अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्द्धा
- शीतयुद्ध की प्रतिद्वंद्विता में अंतरिक्ष अन्वेषण का एक और नाटकीय क्षेत्र के रूप में उभार हुआ।
- वर्ष 1957 में सोवियत संघ ने स्पुतनिक1 का प्रक्षेपण किया, यह विश्व का पहला मानव निर्मित कृत्रिम उपग्रह था जिसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।
- वर्ष 1958 में अमेरिका ने एक्सप्लोरर1 नामक अपना पहला उपग्रह प्रक्षेपित किया।
- इस अंतरिक्ष प्रतिस्पर्द्धा में अंततः जीत अमेरिका की हुई जब इसने वर्ष 1969 में सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर पहला मानव (नील आर्मस्ट्रांग) भेजा।
हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा
- सोवियत संघ पर अमेरिकी नियंत्रण रणनीति ने संयुक्त राज्य अमेरिका को वृहत पैमाने पर हथियारों का संग्रहकर्त्ता बना दिया और प्रतिक्रिया में सोवियत संघ ने भी यही किया।
- वृहत पैमाने पर परमाणु हथियारों का विकास हुआ और विश्व ने परमाणु युग में प्रवेश किया।
क्यूबा मिसाइल संकट, 1962
- क्यूबा भी तब इस शीत युद्ध में शामिल हो गया जब अमेरिका ने वर्ष 1961 में क्यूबा के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिये और सोवियत संघ ने क्यूबा की आर्थिक सहायता में वृद्धि कर दी।
- वर्ष 1961 में अमेरिका ने क्यूबा में ‘बे ऑफ पिग्स’ आक्रमण की योजना बनाई जिसका उद्देश्य सोवियत समर्थित फिदेल कास्त्रो की सत्ता को उखाड़ फेंकना था किंतु अमेरिका का यह अभियान विफल रहा।
- इस घटना के बाद फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ से सैन्य मदद की अपील की जिस पर सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइल लान्चर स्थापित करने का निर्णय लिया जिसका उद्देश्य अमेरिका को लक्ष्य बनाना था।
- क्यूबा मिसाइल संकट ने दोनों महाशक्तियों को परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँचा दिया था। हालाँकि कूटनीतिक प्रयासों से इस संकट को टालने में सफलता मिली।