सामाजिक मूल्य.आर्थिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।” राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि के संदर्भ में उपर्युक्त कथन पर उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये।
14 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • मूल्य से क्या आशय है? • आर्थिक मूल्य क्या हैं। • राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि तथा आर्थिक मूल्यों के मध्य क्या संबंघ है। |
मूल्यों से आशय उन गहरे नैतिक आदर्शों से है जिन्हें प्राप्त करने के लिये नैतिक नियम बनाए जाते हैं। उदारहण के लिये, शांति, न्याय, सहिष्णुता, आनंद, ईमानदारी, समयबद्धता आदि प्रसिद्ध मूल्य है। मूल्यों के संबंध में समाज की समझ होती है कि वे सामाजिक जीवन को संभव व श्रेष्ठ बनाने के लिये आवश्यक है।
मूल्यों को साकार करने के लिये सामाजिक मानक, रीति-रिवाज़ परंपराएँ, प्रथाएँ इत्यादि निर्मित होती है। मूल्यों का संबंध व्यक्ति के अवचेतन में स्थित सिद्धांतों, अनुभवों एवं लक्ष्यों से होता है। एक समाज में होने के कारण व्यक्ति अनगिनत आयामों के संबंध में कुछ न कुछ धारणाएँ अवश्य रखता है। सामाजिक मूल्यों के अंतर्गत राजनीतिक मूल्य, पारिवारिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, व्यावसायिक मूल्य आदि आते हैं।
आर्थिक मूल्यों का संबंध व्यक्ति के जीवन में ‘अर्थ’ की ज़रुरत एवं उसे अर्जित करने के तरीकों से है। यदि किसी समाज में पैसे को लेकर लोग ज़्यादा महत्त्वाकांक्षी होंगे तो संभव है कि इन्हें इसके बदले कुछ अन्य मूल्यों का भी त्याग करना पड़े। ऐसे समाज में आध्यात्मिक, भाईचारा एवं प्रेम आदि से संबंधित मूल्य कम हो सकते है।
राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि के लिये यह आवश्यक है कि उस समाज की बुनियाद आर्थिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित हो, परंतु इसके अतिरिक्त भी कई सारे मूल्य है, जैसे- पारिवारिक मूल्य, कमज़ोर वर्गों की देखभाल, पर्यावरणीय मूल्य आदि जो राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि के लिये उतने ही आवश्यक है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक मूल्य आर्थिक मूल्यों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।