‘स्वतंत्रता संग्राम का अटूट हिस्सा रहे नैतिक आचरणों के ऊँचे मापदंड भारतीय राजनीति में समय के साथ कमज़ोर होते जा रहे हैं।’ जनप्रतिनिधियों और उच्च पदों पर आसीन लोगों के लिये आचार संहिता की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए इस संदर्भ में द्वितीय प्रशासनिक आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख कीजिये।
11 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • आचरण संहिता किसे कहते हैं ? • जनप्रतिनिधियों के लिये आचरण संहिता की आवश्यकता क्यों है? • इस संदर्भ में द्वितीय प्रशासनिक आयोग की रिपोर्ट। • सुझाव के बिंदु। • निष्कर्ष। |
वर्ष 2018 में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने संसदीय संस्थानों के प्रति नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने और कार्यपालिक/विधायिका के कामकाज को सुचारु रूप से चलाने के लिये नीति निर्माताओं से सांसदों एवं विधायकों हेतु एक आचरण संहिता के निर्माण का आग्रह किया था। ऐसे में यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि क्या नैतिक आचरण के ऊँचे मापदंडों की विरासत को बनाये रखने के लिये नए नियमों की आवश्यकता है?
नीति संहिता और आचरण संहिता दोनों का संबंध प्रशासन या प्रबंधन में नैतिकता की स्थापना से है नैतिक संहिता में कुछ नैतिक मूल्यों को शामिल किया जाता है जबकि आचरण संहिता नैतिक संहिता पर आधारित दस्तावेज़ है जो कुछ निश्चित कार्यों या आचरणों के बारे में बताती है।
जनप्रतिनिधियों के लिये आचरण संहिता की आवश्यकता क्यों है?
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ चुनावों को लोकतंत्र के पर्व के रूप में देखा जाता है, किंतु भारत के इसी लोकतांत्रिक पर्व का एक अन्य पक्ष भी है। भारत में चुनावों को अक्सर निजी हमलों तथा अपमानजनक और नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिये याद किया जाता है। सामान्यतः ऐसे भाषणों के कारण ही देश में सांप्रदायिकता और अराजकता का माहौल पैदा होता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये जनप्रतिनिधियों के आचारण को नियंत्रित करना आवश्यक हो जाता है।
कई जनप्रतिनिधि अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करने के प्रयास में अक्सर अपने निजी और सार्वजानिक जीवन के मध्य की रेखा को मिटा देते हैं और चुनाव जीतने के लिये किसी भी हद तक चले जाते हैं। इसके अलावा कुछ राजनेता मतदाताओं को प्रतिकूल परिणाम भुगतने की धमकियाँ भी देते हैं।
देश के सदन की कार्य क्षमता में भी काफी कमी देखने को मिली है। आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 1952 से वर्ष 1967 तक तीनों लोक सभाओं ने औसतन 3,700 घंटे तक कार्य किया, जबकि 16वीं लोकसभा ने मात्र 1,615 घंटे ही कार्य किया। विदित हो कि अंतिम लोकसभा के कार्य घंटे अब तक की सभी पूर्ण लोक सभाओं के औसत कार्य घंटे से 40 प्रतिशत से भी कम है।
संसद में हंगामा करना, अस्वीकार्य टिप्पणी करना और सदन की कार्यवाही को बाधित करने जैसे आरोप मौजूदा समय में लगभग प्रत्येक छोटे-बड़े नेता के नाम के साथ जुड़े हुए हैं। जनप्रतिनिधि देश के आम नागरिकों के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में भी कार्य करते हैं और यदि वे अपने आचरण में सुधार नहीं करेंगे तो आम जनता को भी इस सुधार के लिये प्रेरित नहीं कर पाएँगे।
इसके अतिरिक्त राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र का प्रमुख अंग बन गया है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत में राजनीति अपराधियों को बच निकलने का एक नया रास्ता प्रदान करती है। ऐसी स्थिति पर आचार संहिता के माध्यम से काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है। अतः राजनीतिक भाषणों और अभिव्यक्तियों में शिष्टाचार सुनिश्चित करने के लिये राजनेताओं हेतु आचारण संहिता अनिवार्य है।
द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने जनप्रतिनिधियों के लिये नैतिक तथा आचरण संहिता पर निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं-
अन्य सुझाव :
निष्कर्षतः इस संदर्भ में चुनाव आयोग की भूमिका को और अधिक विस्तृत किये जाने की आवश्यकता है, उनकी भूमिका केवल आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं के विरुद्ध FIR दर्ज करने तक सीमित नहीं रहनी चाहिये। चुनाव आयोग को ऐसे उम्मीदवारों के राजनीतिक दलों से इनकी उम्मीदवारी रद्द करने की भी सिफारिश करनी चाहिये। नियमों का उल्लंघन करने पर राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने जैसे कठोर कदम देश के लोकतंत्र के पक्ष में हो सकते हैं। साथ ही यह भी यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि आचार संहिता विपक्ष की भूमिका पर अंकुश लगाने का साधन न बन जाए।