उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद में अंतर स्पष्ट करते हुए नवीन साम्राज्यवाद के प्रेरक तत्त्वों पर प्रकाश डालें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• साम्राज्यवाद क्या है? यह उपनिवेशवाद से कैसे भिन्न है ?
• नवीन साम्राज्यवाद से क्या आशय है?
• नवीन साम्राज्यवाद के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख करें।
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विश्व इतिहास में साम्राज्यवाद शब्द का प्रयोग व्यापक स्तर पर हुआ है; इस कारण इसकी निश्चित परिभाषा दे पाना एक चुनौती है। चार्ल्स हाजस के अनुसार, ‘‘साम्राज्यवाद दूसरे राष्ट्रों के लोगों के आतंरिक जीवन में विदेशी राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक स्तर पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हस्तक्षेप है अर्थात् एक देश के लोगों द्वारा दूसरे देश के लोगों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण करना है।’’
उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद में अंतर:
- उपनिवेशवाद के तहत किसी क्षेत्र एवं वहां के नागरिकों पर राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक नियंत्रण बनाया जाता है जो दीर्घकालीन प्रक्रिया का प्रतिफल होता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया पर यूरोप का शासन जबकि साम्राज्यवाद के तहत विदेशी शक्ति किसी क्षेत्र एवं वहां के नागरिकों के प्रमुख आर्थिक कारकों पर नियंत्रण रखती है। उदाहरण के तौर पर 1870 ई. के बाद यूरोप का अफ्रीका पर विस्तार या फिर संयुक्त राज्य अमेरिका का पोर्टरिकों एवं फिलीपींस पर अधिकार।
- साम्राज्यवाद का अस्तित्व सभ्यता के प्रारंभ से है जैसे-रोमन साम्राज्य, सिकंदर का साम्राज्य आदि। जबकि उपनिवेशवाद का उदय भौगोलिक खोजों एवं औद्योगिक क्रांति जैसे क्रांतिकारी परिवर्तनों से हुआ।
- साम्राज्यवाद राज्य के प्रयासों का प्रतिफल होता है जबकि उपनिवेशवाद व्यक्तिगत एवं संस्थागत दोनों के प्रयासों से भी संभव है।
नवीन साम्राज्यवाद के प्रेरक तत्व-
- आर्थिक कारक: 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यूरोप में त्वरित औद्योगिक विकास हुआ। उत्पादन इतना अधिक होने लगा कि खपत के लिये बाज़ार की आवश्यकता महसूस हुई। साथ ही सतत रूप से उद्योगों को संचालित करने के लिये कच्चे माल की आवश्यकता बढ़ती चली गई। अत: यूरोपीय देशों में एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के अविकसित देशों पर नियंत्रण करने की प्रतिस्पर्द्धा प्रारंभ हो गई।
- यूरोप में जनसंख्या वृद्धि: 19वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के विस्तार के साथ ही यूरोप के देशों में जनसंख्या वृद्धि हुई। ब्रिटेन एवं स्केंडेनेवियाई देशों में आबादी वृद्धि दर औसत से उच्च रही। अतिरिक्त जनसंख्या को रोज़गार देने तथा बसाने के क्रम में उपनिवेशों पर अधिकार को बढ़ावा मिला।
- साहसी खोजकर्ताओं का योगदान: साहसी व्यक्तियों तथा खोजकर्ताओं के कार्यों से भी उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला। कुछ प्रशासकों तथा सैनिक प्रमुखों ने भी उपनिवेश स्थापना को राष्ट्रीय दायित्व मानकर लगन एवं निष्ठा से इसे पूरा करने का प्रयास किया। विशेषकर अफ्रीकी महाद्वीप पर यूरोप के साम्राज्यवाद की स्थापना में साहसी खोजकर्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- राष्ट्रवाद का प्रसार: आर्थिक उद्देश्यों को गतिशील तथा त्वरित बनाने ने राष्ट्रीयता की भावना निर्णायक रही। 19वीं सदी में यूरोप के देशों में अनेक राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ, लेखक, विचारक एवं अर्थशास्त्री हुए, जिन्होंने राष्ट्रीय गौरव, राष्ट्रीय सुरक्षा तथा आत्मनिर्भरता की दृष्टि से उपनिवेशवाद को निरंतर प्रोत्साहित किया।
- ईसाई धर्म प्रचारकों की भूमिका: ईसाई धर्म का प्रसार करने एवं पश्चिमी संस्कृति को विस्तारित करने में ईसाई मिशनरियों की भूमिका अहम रही। इंग्लैंड के डॉक्टर लिविंगस्टोन ने 20 वर्षों तक अफ्रीका के आंतरिक प्रदेशों तथा कांगो नदी घाटी के क्षेत्रों की खोज की। 1873 ई. लिविंगस्टोन ने मृत्यु से पूर्व इंग्लैंड वासियों को संदेश भेजा कि अफ्रीका की भूमि व्यापार करने एवं ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये उपर्युक्त है।
- डार्विन के सामाजिक सिद्धांत का प्रभाव: हर्बट स्पेंसर ने डार्विन के सिद्धांत ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ को समाज तथा राष्ट्र स्तर पर लागू किया, जिसे सामाजिक सिद्धांत कहते है। इस आधार पर यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने उपनिवेशों की स्थापना को तर्क संगत बताया।
- तकनीकी तथा चिकित्सकीय विकास की भूमिका: उन्नत तकनीक एवं मेडिकल ज्ञान के सतत विकास से साम्राज्यवाद की प्रक्रिया आसान हो गई। इससे यूरोपवासियों का एशिया तथा अफ्रीका में स्थायी निवास संभव हुआ। स्टीमबोट, टेलीग्राफ और बंदूक के विकास से यूरोपीय शक्तियों को उपनिवेशकों में शासन के विस्तार एवं विद्रोह के दमन में सफलता मिली।