‘प्रत्यर्पण संबंधी कमज़ोरियों के कारण भारत को भगोड़े अपराधियों पर कार्यवाही करने में तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।’ टिप्पणी करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• प्रत्यर्पण हेतु सामान्य शर्तें क्या हैं?
• भारत के समक्ष चुनौतियाँ।
• सुधार के बिंदु।
• निष्कर्ष।
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प्रत्यर्पण एक देश की ओर से किसी अन्य देश को आरोपी व्यक्तियों को वापस सौंपने की व्यवस्था को संदर्भित करता है, जो मूल देश को ऐसे अपराधों जिनमें वे दोषी या आरोपी हैं और उन्हें न्यायालय के समक्ष पेश किया जाना आवश्यक है, से निपटने में सहायता प्रदान करती है।
प्रत्यर्पण हेतु सामान्य शर्तें:
- प्रत्यर्पण-योग्य अपराधों के सिद्धांत के अनुसार, संधि में स्पष्ट रूप से उल्लिखित अपराधों के संबंध में ही प्रत्यर्पण लागू हो सकता है।
- दोहरे अपराध के सिद्धांत के अनुसार जिस अपराध के लिये प्रत्यर्पण की मांग की गई है, वह अपराध, अनुरोध करने एवं अनुरोध प्राप्त करने वाले देशों के प्रत्यर्पण संबंधी राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत शामिल होना चाहिये।
- विशिष्टता के नियम के तहत प्रत्यर्पित व्यक्ति के विरुद्ध केवल उसी अपराध के तहत कार्यवाही की जानी चाहिये जिसके लिये उसके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया था।
- मुक्त एवं पारदर्शी न्यायिक कार्यवाही: दोषी व्यक्ति की पारदर्शी सुनवाई की जानी चाहिये। यह अपेक्षित है कि न्यायपालिका एवं अन्य वैधानिक प्राधिकरण इन सिद्धांतों को ऐसी स्थितियों में भी समान रूप से कार्यान्वित करेंगे, जहाँ कोई प्रत्यर्पण संधि मौजूद नहीं है।
भारत के लिये चुनौतियाँ:
- संधियों का अभाव: अन्य देशों की तुलना में भारत की चीन, पाकिस्तान, म्यांमार तथा अफगानिस्तान जैसे कई पड़ोसी राज्यों के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि मौजूद नहीं है। उदाहरणतः भारत द्वारा एंटीगुआ तथा बरबूडा के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं की गई है, जिसके कारण मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण में विलंब हो रहा है।
- संधि में शमिल अपराध: सामान्यत: प्रत्यर्पण संधि इसके अंतर्गत सम्मिलित अपराधों तक सीमित होती है, जो कि एक देश से दूसरे देश में भिन्न हो सकते हैं।
- दोहरे अभियोजन संबंधी प्रावधान: यह एक ही अपराध हेतु दो बार सजा देने का निषेध करता है। यह डेविड हेडली को अमेरिका से प्रत्यर्पित करने में भारत की विफलता का प्राथमिक कारण था।
- मानवाधिकार संबंधी मुद्दे: यूनाइटेड किंगडम तथा अन्य यूरोपीय देशों ने प्राय: इस संभावना पर भारत के प्रत्यर्पण अनुरोधों को अस्वीकार किया है कि भारत की जेलों में निम्नस्तरीय अवसंरचना, निम्नस्तरीय स्वच्छता तथा अन्य कारक भारतीय कारावासों को पुनर्वास तथा सज़ा हेतु अनुपयुक्त बनाते हैं।
- यातना-विरोधी कानून की अनुपस्थिति: इससे प्रत्यर्पणों को सुनिश्चित करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न हुई हैं क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के मध्य यह भय व्याप्त है कि दोषी व्यक्ति को भारत में कठोर यातना दी जाएगी। उदाहरण- डेनमार्क ने परुलिया हथियार कांड में किम डेवी के प्रत्यर्पण के अनुरोध को भारत में ‘‘यातना तथा अन्य अमानवीय व्यवहार’’ के जोखिम के कारण अस्वीकार कर दिया।
उपर्युक्त दशाओं में सुधार हेतु भारत द्वारा निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जाना अपेक्षित है-
- द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करना।
- प्रत्यर्पण संधियों की संख्या बढ़ाना।
- प्रभावी निवारक कानून तथा नीतिगत उपाय अपनाना।
- कारावास संबंधी सुधारों को लागू करना।
- जाँच में विलंब संबंधी समस्या का समाधान करना।
- एक पृथक सेल की स्थापना।
उपरोक्त उपायों को अपनाकर भारत निश्चित रूप से प्रत्यर्पण संबंधी कमज़ोरियों को दूर कर भगोडे़ अपराधी जो कि ज़्यादातर आर्थिक अपराधों में संलिप्त हैं, को सज़ा दिलाना सुनिश्चित कर सकता है।