संयुक्त राष्ट्र तथा उसके विभिन्न घटक निकायों ने ‘पर्याप्त आवास के अधिकार’ को बुनियादी मानवाधिकार के रूप में स्वीकृति प्रदान की है इसके बावजूद भारत में बड़ी संख्या में लोग इस अधिकार से वंचित हैं’ चर्चा करें
06 Feb, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
हल करने का दृष्टिकोण : • भूमिका। • आवासीय गरीबी की अवधारणा। • पर्याप्त आवास का अधिकार। • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय गरीबी। |
भारत ने पर्याप्त आवास के अधिकार के संदर्भ में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, किंतु इसके बावजूद देश में सभी नागरिकों को आवास उपलब्ध कराना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। पर्याप्त आवास के अधिकार की सर्वाधिक उपेक्षा देश के ग्रामीण क्षेत्र में देखी जा सकती है, जहाँ, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ आदि उपलब्ध कराना भी एक चुनौती है।
‘आवासीय गरीबी’ की अवधारणा क्या है ?
अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, गरीबी का आशय ‘बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं से वंचित रहने की स्थिति’ से है। आवासीय गरीबी की अवधारणा भी गरीबी की अवधारणा के अनुरूप ही है। आवासीय गरीबी की अवधारणा को समझने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम ‘पर्याप्त आवास’ की अवधारणा को समझें, क्योंकि पर्याप्त आवास कि कमी ही आवासीय गरीबी को जन्म देती है। विश्लेषकों का मानना है कि आवासीय गरीबी एक व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहने तथा आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से उत्पादक होने की क्षमता को प्रभावित करती है।
पर्याप्त आवास का अधिकार
भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत पर्याप्त आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में प्रत्येक नागरिक को पर्याप्त आवास तक पहुँच का अधिकार है। ऐसा माना जाता है कि राष्ट्र को उपलब्ध संसाधनों के दायरे में पर्याप्त आवास के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये यथासंभव प्रयास करना चाहिये। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद-25 के अनुसार, ‘प्रत्येक व्यक्ति को अपने तथा अपने परिवार के लिये गरिमामयी जीवन स्तर की प्राप्ति का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा तथा अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाएँ शामिल हैं।’
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय गरीबी
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 25.85 मिलियन लोग आवासीय गरीबी का सामना कर रहे हैं, जिसमें से लगभग 82 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और शेष शहरी क्षेत्रों में। ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में आवासीय गरीबी के अनुपात का अंतर काफी अधिक है और यह ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल मज़दूर तथा कम आय वाले लोग गरीबी के इस प्रकार से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय व्यवस्था से असंतोष तथा अन्य जगहों पर बेहतर आवास की संभावना के कारण आंतरिक प्रवास की दर भी काफी उच्च रहती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय गरीबी के कारण
इस दिशा में कुछ सरकारी प्रयास भी किये गए -1 मार्च, 2016 को पूर्ववर्ती इंदिरा आवास योजना का पुनर्गठन कर इसे प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्राम (PMAY-G) नाम दिया गया था। PMAY-G का उद्देश्य वर्ष 2022 तक सभी आवासहीन गृहस्वामियों और कच्चे तथा जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के घर उपलब्ध कराना है। इस योजना की कुल लागत का बँटवारा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में किया जाता है, जबकि पूर्वोत्तर तथा हिमालयी राज्यों के लिये यह राशि 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है।
निष्कर्षतः यदि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में हमें आवास विभाजन या असमानता को कम करना है तो इसके लिये एक ‘एकीकृत आवासीय विकास’ रणनीति की आवश्यकता होगी, जिसे ‘मिशन मोड’ में लागू किया जाएगा। शासन के विभिन्न स्तरों पर सामाजिक अंकेक्षण के साथ-साथ इस तरह के मिशन को लागू करने के संबंध में जवाबदेही तय की जानी चाहिये। पेयजल आपूर्ति, घरेलू शौचालय, ऊर्जा और जल निकासी से संबंधित अन्य लागतों के अलावा नई आवासीय इकाइयों के पुनर्विकास को ध्यान में रखकर संसाधनों के सही आवंटन की आवश्यकता है।