महासागरीय धाराओं को परिभाषित करें। इनकी उत्पत्ति की प्रक्रिया तथा स्थानीय मौसम एवं उद्योगों पर इनके प्रभावों की चर्चा करें।
27 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
उत्तर की रूपरेखा
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जब महासागरों के जल की बहुत बड़ी मात्रा एक निश्चित दिशा में लंबी दूरी तक सामान्य गति से बहने लगती है तो उसे महासागरीय धारा कहते हैं। इन धाराओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- गर्म धाराएँ और ठंडी धाराएँ। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएँ गर्म और ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर बहने वाली धाराएँ ठंडी होती हैं। कोरिओलिस बल के प्रभाव से उत्तरी गोलार्द्ध की धाराएँ अपने दाईं ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध की धाराएँ अपने बाईं ओर प्रवाहित होती हैं।
महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारणों से होती है, जिनमें पृथ्वी की घूर्णन गति, महासागरीय जल के तापमान, लवणता, घनत्व आदि में भिन्नता की स्थिति, वायुदाब एवं प्रचलित हवाएँ, वर्षा की मात्रा एवं वाष्पीकरण में भिन्नता आदि प्रमुख हैं। धाराओं का प्रवाह, दिशा तथा गति पर सागरीय तल के उच्चावच, तटरेखा का आकार एवं दिशा, मौसमी परिवर्तन, पृथ्वी के घूर्णन की दिशा आदि का भी उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है।
प्रशांत महासागर की धाराओं में क्यूरोशियो, क्युराइल, कैलिफोर्निया और पेरू की धाराएँ प्रमुख हैं। अटलांटिक महासागर की धाराओं में गल्फस्ट्रीम, लेब्राडोर, कनारी, फाकलैंड और बेंगुएला धाराएँ प्रमुख हैं। हिन्द महासागर में मोजाम्बिक व अगुलहास प्रमुख धाराएँ हैं।
महासागरीय धाराएँ जलवायु, मानव तथा जलीय जीवों एवं व्यापार इत्यादि को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती हैं–