‘1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रवाद का शैशवकाल था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों ने इस काल में राष्ट्रवाद की धरती को सींचा तथा उसमें गहरे तक राष्ट्रीयता के बीज बो दिये’ टिप्पणी करें।
31 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • 1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रवाद का विकास। • प्रारंभिक राष्ट्रवादियों का योगदान। • निष्कर्ष। |
भारतीय इतिहास में 1885 से 1905 ई. तक का चरण उदारवादी चरण के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस चरण में आंदोलन का नेतृत्व मुख्यत: उदारवादी नेताओं के हाथों में रहा।
ये नेता उदारवादी नीतियों तथा अहिंसक विरोध प्रदर्शनों में विश्वास रखते थे। इनकी यही विशेषता इन्हें 20वीं सदी के प्रथम दशक में उभरने वाले नव-राष्ट्रवादियों से पृथक करती है।
ये उदारवादी, कानून के दायरे में रहकर अहिंसक संवैधानिक प्रदर्शनों के पक्षधर थे। यद्यपि उदारवादियों को यह नीति अपेक्षाकृत धीमी थी किंतु इससे क्रमबद्ध राजनीतिक विकास की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। उदारवादियों का मत था कि अंग्रेज़ भारतीयों को शिक्षित बनाना चाहते हैं तथा वे भारतीयों की वास्तविक समस्याओं से बेखबर नहीं हैं। अत: सर्वसम्मति से सभी देशवासी प्रार्थनापत्रों, याचिकाओं एवं सभाओं आदि के माध्यम से सरकार से अनुरोध करें तो सरकार धीरे-धीरे उनकी मांगे स्वीकार कर लेगी। अपने इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये उदारवादियों ने दो प्रकार की नीतियों का अनुसरण किया। पहला, भारतीयों में राष्ट्रप्रेम तथा चेतना जागृत कर राजनीतिक मुद्दों पर उन्हें शिक्षित करना एवं उनमें एकता स्थापित करना।
दूसरा, ब्रिटिश जनमत एवं ब्रिटिश सरकार को भारतीय पक्ष में करके भारत में सुधारों की प्रक्रिया प्रारंभ करना उदारवादियों का मानना था कि ब्रिटेन से भारत का संपर्क होना भारतीयों के हित में है तथा अभी ब्रिटिश शासन को प्रत्यक्ष रूप से चुनौती देने का यथोचित समय नहीं आया है इसलिये बेहतर होगा कि उपनिवेशी शासन को भारतीय शासन में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाए।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उदारवादियों का योगदान-