‘हाल ही में इनर लाइन परमिट प्रणाली पर भ्रम की स्थिति के कारण नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ।’ इनर लाइन परमिट प्रणाली से आप क्या समझते हैं, यह छठी अनुसूची से किस तरह संबंधित है? चर्चा करें।
30 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण: • इनर लाइन परमिट क्या है? • छठी अनुसूची और इनर लाइन परमिट • निष्कर्ष |
इनर लाइन परमिट एक दस्तावेज़ है जो एक भारतीय नागरिक को ILP प्रणाली के तहत संरक्षित राज्य में जाने या रहने की अनुमति देता है। यह परमिट उन सभी के लिये अनिवार्य है जो संरक्षित राज्यों से बाहर रहते हैं। यह सिर्फ यात्रा के प्रयोजनों के लिये संबंधित राज्य द्वारा ही जारी किया जाता है। इनर लाइन परमिट की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत बंगाल के पूर्वी हिस्से की जनजातियों की सुरक्षा के लिये की थी। 1873 के विनियमन की धारा 2 के तहत ILP केवल तीन उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड पर लागू था। हाल ही में 11 दिसंबर को राष्ट्रपति ने ILP को मणिपुर में भी लागू किये जाने वाले आदेश पर हस्ताक्षर किये जो कि चौथा ऐसा राज्य बना जहाँ ILP प्रणाली लागू होती है।
विदेशी पर्यटकों को उन पर्यटन स्थलों की यात्रा करने के लिये एक संरक्षित क्षेत्र परमिट (पीएपी) की आवश्यकता होती है जो घरेलू पर्यटकों द्वारा आवश्यक इनर लाइन परमिट से भिन्न होता है। विदेशियों (संरक्षित क्षेत्रों) के आदेश, 1958 के तहत 'इनर लाइन' में पड़ने वाले सभी क्षेत्रों जैसा कि उक्त आदेश में परिभाषित किया गया है एवं राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
ज्ञातव्य है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों एवं इनर लाइन परमिट प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के लिये लागू नहीं हुआ है। 19 दिसंबर, 2019 को मेघालय विधानसभा ने राज्य में इनर लाइन परमिट को लागू करने के लिये केंद्र से आग्रह करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया।
इनर लाइन परमिट की अवधारणा औपनिवेशिक काल में उत्पन्न हुई। बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर नियमन अधिनियम, 1873 के तहत ब्रिटिश शासन ने बाहरी लोगों के प्रवेश निषेध एवं निर्दिष्ट क्षेत्रों में बाहरी लोगों के रहने को विनियमित किया। चार पूर्वोत्तर राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है। कोई भी भारतीय नागरिक इन राज्यों में से किसी में भी बिना परमिट के प्रवेश नहीं कर सकता है जब तक कि वह उस राज्य से संबंधित न हो और न ही वह ILP में निर्दिष्ट अवधि से अधिक वहां रह सकता है।
संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है। चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है लेकिन वे संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण से बाहर नहीं हैं। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है। अतः राज्यपाल इनके क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या इनका नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा सीमाएँ निर्धारित कर सकता है इत्यादि। यदि एक स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में भी एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है। ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि, वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है। अपने क्षेत्रीय न्यायालयों के अंतर्गत ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्य पालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है। यह गैर आदिवासियों द्वारा ऋण एवं व्यापार के नियंत्रण के लिये नियम भी बना सकता है लेकिन ऐसे नियमों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है। ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषदों के पास भू राजस्व का आकलन एवं संग्रहण करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है। संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं। राज्यपाल स्वायत्त ज़िलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले की जाँच और रिपोर्ट करने के लिये एक आयोग नियुक्त कर सकता हैं। वह आयोग की सिफारिश पर ज़िला या क्षेत्रीय परिषद को भंग कर सकता है।
उपरोक्त के बावजूद छठी अनुसूची की कुछ अंतर्निहित समस्याएँ हैं जैसे- इसने क्षेत्र में स्वायत्तता की वास्तविक प्रक्रिया लाने के बजाय कई शक्ति केंद्र निर्मित कर दिये हैं। ज़िला परिषदों और राज्य विधानसभाओं के बीच अक्सर हितों का टकराव होता हैं। उदाहरण के लिये मेघालय, राज्य के गठन के बावजूद राज्य सरकार के साथ लगातार विवाद के कारण पूरे राज्य में छठी अनुसूची जारी है। वित्तीय स्वायत्तता के संदर्भ में अनुमोदित बजट एवं राज्य सरकार से प्राप्त धन के मध्य एक बड़ा अंतर होता है जिसका इन जनजातीय समुदायों के विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। फरवरी 2019 में वित्त आयोग (अनुच्छेद 280) और संविधान की छठी अनुसूची से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करने के लिये संसद में 125वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया गया था। यह पूर्वोत्तर क्षेत्र की छठी अनुसूची के तहत आने वाले 10 स्वायत्त परिषदों की वित्तीय एवं कार्यकारी शक्तियों में वृद्धि की मांग करता है। निष्कर्षतः समय की मांग है कि इस अनुसूची के प्रावधानों पर पुनर्विचार कर उपयुक्त संशोधन किये जाएँ।