गांधीवादी विचारधारा से आप क्या समझते हैं? वर्तमान संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें।
29 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • गांधीवादी विचारधारा से आप क्या समझते हैं? • प्रमुख गांधीवादी विचार। • वर्तमान संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा। • निष्कर्ष। |
गांधीवादी विचारधारा महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह है जो उन्होंने पहली बार वर्ष 1893 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाई थी। गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।
यह दर्शन कई स्तरों आध्यात्मिक या धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और सामूहिक आदि पर मौजूद है। इसके अनुसार-आध्यात्मिक या धार्मिक तत्त्व और ईश्वर इसके मूल में हैं।मानव स्वभाव को मूल रूप से सद्गुणी है।सभी व्यक्ति उच्च नैतिक विकास और सुधार करने के लिये सक्षम हैं।
गांधीवादी विचारधारा आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है। गांधीवादी दर्शन एक दोधारी तलवार है जिसका उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार व्यक्ति और समाज को एक साथ बदलना है। गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया। टॉलस्टॉय की पुस्तक 'द किंगडम ऑफ गॉड इज यू इन यू' का महात्मा गांधी पर गहरा प्रभाव था। गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक 'अनटू दिस लास्ट' से 'सर्वोदय' के सिद्धांत को ग्रहण किया और उसे जीवन में उतारा। इन विचारों को बाद में "गांधीवादियों" द्वारा विकसित किया गया ह, विशेष रूप से, भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण तथा भारत के बाहर मार्टिन लूथर किंग जूनियर और अन्य लोगों द्वारा।
प्रमुख गांधीवादी विचार
सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैं।
गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है।
अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधीजी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।
सत्याग्रह: इसका अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना।यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है।
सर्वोदय- सर्वोदय शब्द का अर्थ है 'यूनिवर्सल उत्थान' या 'सभी की प्रगति'। यह शब्द पहली बार गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक "अनटो दिस दिस लास्ट" पर पढ़ा था।
स्वराज- हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधी जी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है।
ट्रस्टीशिप- ट्रस्टीशिप एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जिसे गांधी जी द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
स्वदेशी: स्वदेशी का अर्थ अपने देश से है, लेकिन ज़्यादातर संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है।
आज के संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता:
निष्कर्षतः गांधीवादी विचारधारा ने ऐसे संस्थानों और कार्यप्रणालियों के निर्माण को आकार दिया जहाँ सभी की आवाज और परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट किया जा सकता है। उनके अनुसार, लोकतंत्र ने कमजोरों को उतना ही मौका दिया, जितना ताकतवरों को। उनके स्वैच्छिक सहयोग, सम्मानजनक और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर कार्य करने के सुझाव को कई अन्य आधुनिक लोकतंत्रों में अपनाया गया। साथ ही, राजनीतिक सहिष्णुता और धार्मिक विविधता पर उनका ज़ोर समकालीन भारतीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखता है। सत्य, अहिंसा, सर्वोदय और सत्याग्रह तथा उनके महत्त्व से गांधीवादी दर्शन बनता है और ये गांधीवादी विचारधरा के चार आधार हैं।