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प्रश्न :
‘वर्तमान में सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की प्रवृत्ति के कारण इनका निजीकरण किया जाना आज विमर्श का विषय बना हुआ है।’ टिप्पणी करें।
28 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
• भूमिका।
• निजीकरण के प्रमुख उद्देश्य।
• चुनौतियाँ।
• निष्कर्ष।
वर्तमान में कुछ बड़े सार्वजनिक उपक्रमों जैसे- भारत संचार निगम लिमिटेड, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड और एयर इंडिया में घाटे की प्रवृत्ति देखी जा रही है, इन उपक्रमों का घाटा इनके राजस्व प्राप्ति से अधिक है। इनके पुनर्गठन और यहाँ तक कि धन और अन्य संसाधनों के प्रयोग के बावजूद सकारात्मक परिणाम नहीं नहीं मिल हो रहें हैं। सामान्यतः यह माना जाता है कि "व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है"। इसलिये व्यापार/अर्थव्यवस्था में सरकार का अत्यंत सीमित हस्तक्षेप होना चाहिये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन बाज़ार कारकों के माध्यम से होता है। भूमंडलीकरण के पश्चात् इस प्रकार की अवधारण का और तेज़ी से विकास हो रहा है।
निजीकरण के प्रमुख उद्देश्य हैं-
- वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार स्वयं को “गैर सामरिक उद्यमों” के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर अपना अधिक ध्यान केंद्रित करे।
- गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता में सर्वोपरि क्षेत्रों में लगाना चाहिये। जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा तथा सामाजिक एवं आवश्यक आधारभूत संरचना।
- अव्यवहार्य और गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को संपोषित किये जाने वाले दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के उत्तरोत्तर बाह्य प्रवाह (Further out flow) को रोककर सार्वजनिक ऋण के बोझ को कम किया जाना चाहिये।
- वाणिज्यिक जोखिम के जिस सार्वजनिक क्षेत्र में करदाताओं का धन लगा हुआ है, उसे ऐसे निजी क्षेत्र में हस्तांतरित करना जिसके संबंध में निजी क्षेत्र आगे आने के लिये उत्सुक और योग्य हैं। वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगा धन जनसाधारण का होता है। इसलिये कॉर्पोरेट क्षेत्र में लगाए जा रहे अत्यधिक वित्त की मात्रा पर विचार किया जाना अतिआवश्यक है।
- वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़ती गैर-निष्पादन परिसंपत्ति (NPA) की मात्रा, दबावग्रस्त परिसंपत्तियों, बढ़ते भ्रष्टाचार तथा बेहतर प्रबंधन एवं संचालन क्षमता की समस्या आदि की वज़ह से बैंकों के स्वामित्व में सरकार से अपनी हिस्सेदारी बेचने की बात की जा रही है।
निजीकरण के लाभ:
"व्यापार राज्य का व्यवसाय नहीं है," इस अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में निजीकरण से कार्य निष्पादन की बेहतरीन संभावना होती है।
- निजीकरण से सरकारी क्षेत्र के उद्यमों पर सरकारी नियंत्रण भी सीमित होगा और इससे निजीकृत कंपनियों को अपेक्षित निगमित शासन की प्राप्ति हो सकेगी।
- निजीकरण के परिणामस्वरूप शक्ति और प्रबंधन को विकेंद्रित किया जा सकेगा।
- निजीकरण का पूंजी बाज़ार पर लाभकारी प्रभाव होगा। निवेशकों को बाहर निकलने के सरल विकल्प मिलेंगे, मूल्यांकन और कीमत निर्धारण के लिये अधिक विशुद्ध नियम स्थापित करने में सहायता मिलेगी और निजीकृत कंपनियों को अपनी परियोजनाओं अथवा उनके विस्तार के लिये निधियाँ जुटाने में सहायता मिलेगी।
- निजीकृत कंपनियाँ बाज़ार में अनुशासन के परिणामस्वरूप अधिक दक्ष बनेंगीं और अपने वित्तीय एवं आर्थिक कार्यबल के निष्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
- दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
निजीकरण की चुनौतियाँ:
सार्वजनिक उपक्रमों के अनेक लाभ हैं इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि निजी क्षेत्र की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के अधिक आर्थिक, सामाजिक लाभ हैं और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निजीकरण की कई कठिनाइयाँ हैं। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की संकल्पना की गई है, सैद्धांतिक तौर इन विचारों का निजीकरण की प्रक्रिया से मतभेद होता है।
- निजीकरण की प्रक्रिया की सबसे बड़ी कठिनाई यूनियन के माध्यम से श्रमिकों की ओर से होने वाला विरोध है, वे बडे़ पैमाने पर प्रबंधन और कार्य-संस्कृति में परिवर्तन से भयभीत होते हैं।
- निजीकरण के पश्चात् कंपनियों की विशुद्ध परिसंपत्ति का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों और जनसामान्य के लिये नहीं किया जा सकेगा।
- निजीकरण द्वारा बड़े उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिये निगमीकरण प्रोत्साहित हो सकता है जिससे धन संकेंद्रण की संभावना बढ़ जाएगी।
- धन संकेंद्रण और व्यापारिक एकाधिकार की वजह से बाज़ार में स्वस्थ्य प्रतियोगिता का अभाव हो सकता है।
- कार्यकुशलता के मामले में औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का एकमात्र उपाय निजीकरण नहीं है। इसके लिये तो समुचित आर्थिक वातावरण और कार्य संस्कृति में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाना चाहिए। भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था की वर्तमान सभी समस्याओं को एकमात्र उपाय नहीं माना जा सकता।
- वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रहे व्यापार युद्ध और संरक्षणवादी नीतियों के कारण सरकार के नियंत्रण के अभाव में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनके कुप्रभावों को सीमित कर पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। निजीकरण के पश्चात् कंपनियों का तेज़ी से अंतर्राष्ट्रीयकरण होगा और इन दुष्प्रभावों का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
वर्तमान में भूमंडलीकरण के प्रभावों के कारण गतिशील अर्थव्यवस्था का स्वरूप और अर्थव्यवस्था में कार्य निष्पादन, कॉर्पोरेट शासन के साथ-साथ NPA जैसी समस्याओं के कारण कभी-कभी सरकार द्वारा निजीकरण को प्रोत्साहित किया जाना अपरिहार्य हो जाता है। इसलिये सरकार को इस कदम के साथ-साथ सामाजिक और सार्वजनिक हितों पर भी ध्यान देना अतिआवश्यक है जिससे भारतीय संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु एक सकारात्मक कदम उठाया जा सके।
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