‘तीव्र आर्थिक संवृद्धि के बावजूद भारत में कई दशकों से कुपोषण एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक चुनौती के रूप में विद्यमान है।’ कथन के संदर्भ में भारत में कुपोषण के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इससे निपटने हेतु कुछ सुझावों की चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
• भूमिका।
• भारत में कुपोषण के कारण।
• कुपोषण के निवारण हेतु किये गए प्रयास।
• निष्कर्ष।
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'द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रेन 2019' के अनुसार, दुनिया में पाँच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा या दूसरे शब्दों में 70 करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। भारत में हालात और भी बदतर हैं जहाँ करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं । इसका प्रभाव न केवल उनके बचपन पर पड़ रहा है बल्कि उनका भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है । हाल ही में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन द्वारा भारत के सभी राज्यों में कुपोषण की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई। इसके अनुसार 1990 में कुपोषण से मरने वालों की दर 70.4 फीसदी थी और वर्ष 2017 में यह 68.2 फीसदी ही है जो कि चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।
यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण नाटापन, निर्बलता तथा कम वजन बताया है
भारत में कुपोषण के कारण:
- पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के सबसे प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग जैसे एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर होना आदि हो जाते हैं।
- स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 1700 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीज़ों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
- कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारत में महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
- लड़कियों का कम उम्र में विवाह होना और जल्दी माँ बनना।
- स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।
कुपोषण निवारण :
- खाद्य सब्सिडी का परिवर्तित स्वरूप भी बेहतर पोषाहार प्रदान कर सकता है। इसमें एक कदम और आगे बढ़ते हुए सरकार को प्रत्येक बच्चे को आवश्यक पोषक तत्त्व और विटामिन उपलब्ध कराने होंगे।
- जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होने वाली फसलों हेतु कृषि जीवन बीमा योजना, मृदा परीक्षण, गुणवत्तापूर्ण बीज व कम ब्याज पर किसानों के लिये ऋण तथा सिंचाई से संबंधित योजनाएँ चलाई जा रही हैं; जिससे कि खाद्यान्न की देश में पर्याप्तता सुनिश्चित की जा सके।
- स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने हेतु, नए स्वास्थ्य केद्रों का गठन तथा जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चों के पोषण के लिये जरूरी दवाओं और विटामिनों की किफायती दर उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- महिलाओं में कुपोषण के प्रति जागरूकता लाने के लिये सरकार को सामुदायिक मॉडल पर काम करना होगा। सरकार को प्रत्येक आँगनवाड़ी केंद्र पर एक प्रशिक्षिका भेजकर ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण देना होगा। इस संदर्भ में ‘आशा’ की भूमिका सराहनीय हो सकती है।
- यदि स्कूलों में पोषण के बारे में जागरूकता प्रदान की जाए तो कुपोषण के आंकड़ों को बहुत कम किया जा सकता है। इस संदर्भ में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) का नाम लिया जा सकता है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में सुधार की ज़रूरत है।
स्पष्ट है कि हम इस समस्या को जिस अनुपात में आँक रहे हैं, यह उससे कई गुना बड़ी है। आज हमारी वरीयता सिर्फ बच्चों का पेट भरना न होकर उन्हें एक संतुलित और पोषित आहार देना होना चाहिए । यह केवल राष्ट्र की ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि परिवार को भी इसमें अपनी भूमिका समझनी होगी।