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प्रश्न :
‘देश भर में आज कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ भू-जल का स्तर काफी नीचे चला गया है, जिसके कारण आम लोगों का जन-जीवन काफी प्रभावित हुआ है।’ कथन के संदर्भ में भारत में भू-जल की स्थिति की चर्चा करते हुए भू-जल प्रबंधन की आवश्यकता के बिंदुओं पर प्रकाश डालें।
27 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका।
• भारत में भू-जल की स्थिति।
• भू-जल प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है ?
• निष्कर्ष।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में औपचारिक रूप से अटल भू-जल योजना (अटल जल) की शुरुआत की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश के भू-जल प्रबंधन में सुधार लाना है।
भू-जल को भारत में पीने योग्य पानी का सबसे प्रमुख स्रोत माना जाता है। विभिन्न आँकड़ों के अनुसार, भू-जल देश के कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में लगभग 85 प्रतिशत योगदान देता है। इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की बढ़ती मांग के कारण देश के सीमित भू-जल संसाधन खतरे में हैं। देश के अधिकांश क्षेत्रों में व्यापक और अनियंत्रित भू-जल दोहन से इनके स्तर में तेज़ी से और व्यापक रूप से कमी दर्ज़ की जा रही है। आँकड़ों के अनुसार, भारत विश्व में भू-जल के दोहन के मामले में सबसे आगे है, हालाँकि 1960 के दशक में भू-जल को लेकर देश में यह स्थिति नहीं थी। जानकारों का मानना है कि हरित क्रांति ने भारत को भू-जल दोहन के मामले में शीर्ष स्थान पर पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भू-जल प्रबंधन की आवश्यकता
इज़राइल के मुकाबले भारत में जल की पर्याप्त उपलब्धता है, परंतु वहाँ का जल प्रबंधन भारत से कहीं अधिक बेहतर है। इज़राइल में खेती, उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में पुनर्चक्रित (Recycled) पानी का इस्तेमाल होता है, इसीलिये वहाँ लोगों को पेयजल की कमी का सामना नहीं करना पड़ता।भारत में 80% जनसंख्या की पानी की ज़रूरत भू-जल से पूरी होती है और यह भू-जल अधिकांशतः प्रदूषित होता है। ऐसे में बेहतर भू-जल प्रबंधन से ही जलसंकट से उबरा जा सकता है और जल संरक्षण भी किया जा सकता है। जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर था तथा यदि जल्द-से-जल्द इस संदर्भ में सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।
आज़ादी के बाद देश में तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ बनी हैं। पहली नीति वर्ष 1987 में बनी, दूसरी वर्ष 2002 में और तीसरी वर्ष 2012 में तैयार हुई। इसके अलावा कुछ राज्यों ने अपनी स्वयं की जल नीति भी बनाई है। राष्ट्रीय जल नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा, जैविक तथा समान और स्थायी विकास के लिये राज्य सरकारों को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के अनुसार सामुदायिक संसाधन के रूप में जल का प्रबंधन करना चाहिये।
निष्कर्षतः आवश्यक है कि हम भू-जल को एक व्यक्तिगत संसाधन के रूप में देखने के बजाय सामूहिक संसाधन के रूप में देखा जाए। अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि ‘यदि यह ज़मीन मेरी है तो इसके नीचे का जल भी मेरा ही होगा’, परंतु जब तक हम इस धारणा को नहीं छोड़ेंगे तब तक भू-जल का उचित प्रबंधन संभव नहीं हो पाएगा।
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