धर्म से आप क्या समझते हैं ? धार्मिक नैतिकता तथा धर्म-निरपेक्ष नैतिकता को स्पष्ट करें।
25 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • धर्म से आप क्या समझते हैं। • धार्मिक नैतिकता की व्याख्या करें। • धर्म निरपेक्ष नैतिकताकी व्याख्या करें। • निष्कर्ष। |
भारतीय परंपरा में ‘धर्म’ शब्द का प्रयोग दो संदर्भों में होता है- एक संदर्भ वह जहाँ धर्म का अर्थ अपने नैतिक दायित्वों का पालन करना होता है दूसरे अर्थ में जब हमसे कोई पूछता है की हम किस धर्म का पालन करते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर हमारा उत्तर हिन्दू, मुस्लिम, सिख ,ईसाई, यहूदी, पारसी या जैन होता है अतः धर्म शब्द का यह अर्थ मज़हब का पर्यायवाची शब्द है।
सही बात यह है कि धर्म और नैतिकता दो स्वतंत्र अवधारणाऍ हैं जिनमें से किसी का किसी पर टिके होना अनिवार्य नहीं है, दूसरे शब्दों में इनके बीच वे सभी संबंध संभव हैं जो तार्किक स्तर पर किन्हीं दो धारणाओं के बीच सोच सकते हैं।
धार्मिक नैतिकता का पक्ष:
धर्म-निरपेक्ष नैतिकता का पक्ष:
संभव है कि हर धार्मिक परंपरा किसी-न-किसी समय की तात्कालिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिये अस्तित्व में आई हो, पर यह भी सही है कि बहुत सी परंपराएँ समय बीतने के बाद या तो अप्रासंगिक हो जाती हैं या किसी बदलाव की अपेक्षा रखती हैं। धार्मिक नैतिकताओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग उनके मूल कारण को भूल जाते हैं और आँख बंद करके उनके कर्मकांडीय पक्ष का अनुपालन करते रहते हैं। उदाहरण के लिये, हम सब जानते हैं कि दीपावली के दिन बहुत अधिक प्रदूषण होता है जो कि हमारे लिये घातक है; किंतु यह जानने के बावजूद हम दीपावली मनाने का तरीका बदल नहीं पाते क्योंकि धर्म से जुड़े होने के कारण यह हमारे संस्कारों में बुरी तरह से बस चुके हैं।
निष्कर्षतः सही बात यह है कि धर्म और नैतिकता दो स्वतंत्र अवधारणाएँ हैं जिनमें से किसी एक का किसी दूसरे पर टिका होना अनिवार्य नहीं है। कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो गहरे स्तर पर धार्मिक हों और उसी स्तर पर नैतिक भी हों। उदाहरण के लिये, महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध, वर्द्धमान महावीर, गुरु नानक, कबीरदास, ईसा मसीह। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो धार्मिक तो हैं पर नैतिक की बजाय अनैतिक रास्तों पर चलते हैं। उदाहरण के लिये जो धर्मगुरु बलात्कार जैसे मामलों में दोषी पाए जाते हैं, वे धार्मिक होते हुए भी अनैतिक ही माने जाएंगे।हर समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अधार्मिक होकर भी बेहद नैतिक होते हैं। इन्हीं लोगों की धारणा को ‘धर्म-निरपेक्ष नैतिकता’ कहा जाता है। उदाहरण के लिये भगत सिंह पूरी तरह से धर्म विरोधी व्यक्ति थे किंतु उन्होंने देश की आज़ादी के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया। अंतिम वर्ग में वे लोग आते हैं जो न तो धार्मिक हैं और न ही नैतिक। उदाहरण के लिये, यदि कोई व्यक्ति अपनी वासनाएँ संतुष्ट करने के लिये अभ्यस्त अपराधी बन चुका है तथा किसी भी धर्म में उसकी निष्ठा नहीं है तो ऐसे व्यक्ति के लिये यही मानना उचित होगा कि वह न तो धर्म से जुड़ा है और न ही नैतिकता से।