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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिये उत्तरदायी कारकों का उल्लेख करते हुए भारत में इनके पूर्वानुमान के लिये अपनाए जाने वाले उपायों की चर्चा कीजिये।

    30 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में उष्णकटिबंधीय चक्रवात को संक्षेप में समझाएँ।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में इसकी उत्पत्ति के लिये उत्तरदायी कारकों का उल्लेख करते हुए भारत में इनके पूर्वानुमान के लिये अपनाए जाने वाले उपायों की चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष प्रस्तुत करें।

    उष्णकटिबंधीय चक्रवात कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवात हैं। इनकी उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय सागरीय भागों पर तब होती है जब तापमान 27ºC से अधिक हो।

    कोरिओलिस बल की उपस्थिति, उर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर कम होना, कमज़ोर निम्न दाब क्षेत्र तथा समुद्र तल पर ऊपरी अपसरण इन चक्रवातों की उत्पत्ति व विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ पैदा करते हैं। अत्यधिक वाष्पीकरण के कारण आर्द्र हवाओं के ऊपर उठने से इनका निर्माण होता है। इन चक्रवातों को ऊर्जा, संघनन की गुप्त उष्मा से मिलती है। इसीलिये इन चक्रवातों का मुख्य प्रभाव तटीय भागों में ही होता है क्योंकि स्थल भाग पर आने पर इनकी ऊर्जा के स्रोत, संघनन की गुप्त उष्मा, का ह्रास होता चला जाता है।

    उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में पवन की गति 30 किमी. प्रति घंटे से लेकर 225 किमी. प्रति/घंटे तक हो सकती है। भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले अवदाबों के प्रभाव से अप्रैल से नवंबर के बीच ये चक्रवात आते हैं। सामान्य रूप से इनकी गति 40-50 किमी. प्रति/घंटा होती है, परंतु यदि तीव्रता अधिक हो जाए तो विनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

    भारत में इन चक्रवातों के पूर्वानुमान के लिये वर्तमान में तीन तरह के उपाय अपनाए जा रहे हैं-

    1. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अनेक रडार लगाए गए हैं। इनसे तटीय भागों में एवं जहाज़ों को समय-समय पर इन चक्रवातों के वायुदाब व गति संबंधी जानकारी मिलती रहती है।
    2. हवाई जहाज़ों के द्वारा भी रेडियो तरंगों को भेजकर चक्रवातों की क्रियाविधि संबंधी जानकारी प्राप्त कर इनके बारे में पूर्वानुमान लगाया जाता है।
    3. उपग्रहों के द्वारा और भी सूक्ष्मतर तरीकों से इन चक्रवातों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है।

    इन उपायों द्वारा वर्तमान में कम-से-कम 48 घंटे पहले इन चक्रवातों की सूचना दे दी जाती है ताकि मछुआरे, जहाज़ और तटीय क्षेत्र के लोगों को बचाव के लिये समय मिल सके और अनपेक्षित नुकसान न उठाना पड़े। इन प्रयासों की बदौलत ही पिछले कुछ वर्षों में तो महाचक्रवात की स्थिति में भी न्यूनतम जन-हानि हुई है।

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