मैंग्रोव वन समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। इस कथन के संदर्भ में वर्तमान में मैंग्रोव वनों की उपयोगिता, इनके समक्ष आने वाली चुनौतियाँ तथा उनके समाधान की चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका ।
• मैंग्रोव वनों की उपयोगिता।
• इनके समक्ष आने वाली चुनौतियाँ ।
• समाधान ।
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मैंग्रोव या कच्छ वनस्पतियाँ खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखने वाली दुर्लभ वनस्पतियाँ हैं जिनकी ऊँचाई 40 मीटर तक होती है। मैंग्रोव वनस्पतियों के कारण ही तटवर्ती क्षेत्रों में सूनामी, चक्रवात और समुद्री तूफान की विनाशलीला काफी हद तक कम हो जाती है। मैंग्रोव वनस्पतियों से आच्छादित मैंग्रोव वन, भूमि और समुद्री जल के अंतःसंबंधों के अद्भुत उदाहरण हैं।
उपयोगिता
- मैंग्रोव वनस्पतियों की खारे पानी को सहन करने की क्षमता ही इनके समुद्र तटीय क्षेत्रों में पनपने में सहायक होती है।
- मैंग्रोव वनस्पतियाँ ‘लवण सहनशीलता गुणों’ के कारण ही समुद्री तटों में पाई जाती हैं। मैंग्रोव वृक्षों की प्रजातियों के निर्धारण में उस क्षेत्र के शुद्ध जल की मात्रा विशेष प्रभाव डालती है। इस प्रकार स्थलीय क्षेत्र की ओर बढ़ने पर क्रमशः कम लवण सहनशील वृक्षों की संख्या बढ़ने लगती है। मैंग्रोव की कुछ प्रजातियों में लवण के प्रति अद्भुत सहनशीलता देखी गई है।
- मैंग्रोव वनस्पतियाँ ज्वारीय क्षेत्रों में मिट्टी रोककर रखने में सक्षम हैं। मैंग्रोव वनस्पतियाँ ज्वार-भाटे के बीच में पनपती रहती हैं और इनकी जड़ें बहती मिट्टी को रोक लेती हैं। मैंग्रोव वनों के कारण तट की ढलान से समुद्र की लहरों का वेग मंद हो जाता है और उथली ढलानें ज़मीन को क्षरण से बचाने के साथ ही हवाओं के विरुद्ध भी अवरोधक का कार्य करती हैं।
- मैंग्रोव वन क्षेत्र जीव-जंतुओं और पौधों की ऐसी प्रजातियों के संरक्षण क्षेत्र हैं जो विकास की दीर्घकालीन प्रक्रिया से आपस में जुड़े हुए हैं। मैंग्रोव क्षेत्र में उच्च उत्पादक और पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र, स्थलीय और जलीय जीवों से समृद्ध होता है। मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र समृद्ध जैव बहुलता के कारण आर्थिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
- मैंग्रोव औषधीय महत्व के कारण भी महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। इनसे अनेक दवाइयाँ बनाई जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में मैंग्रोव पत्तियों का उपयोग प्राकृतिक चाय के रूप में किया जाता है। मैंग्रोव का उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में किये जाने के साथ-साथ खाद्य पदार्थ के रूप में भी किया जाता है। मैंग्रोव से चारकोल, मोम, टेनिन, शहद और जलावन लकड़ी भी प्राप्त की जाती है।
- मैंग्रोव क्षेत्र की प्रचुर जैव विविधता के लिये प्रकृति ने विशेष व्यवस्था की है। मैंग्रोव पारितंत्र में फफूंदी और बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म-जीव जैविक पदार्थों का विघटन कर इस क्षेत्र की भूमि को पोषक तत्त्वों से समृद्ध रखते हैं। इससे इस पारितंत्र में शैवाल और समुद्री घासों की विभिन्न प्रजातियाँ बहुतायत में मिलती हैं जिन पर शाकाहारी जीव निर्भर होते हैं तथा शाकाहारी प्राणियों की अधिक संख्या होने पर मांसाहारी जीव भी इन क्षेत्रों में आसानी से जीवन यापन करते हैं।
चुनौतियाँ :
- दुनिया भर से पिछले 4दशकों में लगभग 20 प्रतिशत मैंग्रोव वनों का ह्रास हुआ है जो बेहद चिंता का विषय है।
- इन वनों के समाप्त होने से न केवल पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि होगी बल्कि यहाँ पर रहने वाले जीव जंतुओं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
समाधान :
- वैश्विक स्तर पर इन वनों के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु प्रयास किये जाने चाहिये।
- लोगों को इन वनों की उपयोगिता के विषय में जागरुक किया जाना चाहिये।
- वैश्विक स्तर पर इन वनों के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु उन देशों द्वारा गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये जहां ये वन बहुतायत में पाए जाते हैं।