किसी मनुष्य में मूल्यों का विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है, जहां परिवार, समाज और शैक्षिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। एक व्यक्ति का चुनाव जब लोकसेवक के रूप में होता है, तो उसके व्यक्तिगत मूल्यों और सार्वजनिक मूल्यों में टकराव होना स्वाभाविक है। यदि आपका चुनाव एक लोकसेवक के रूप होता है तो आप इन परिस्थितियों का सामना कैसे करेंगे? टिप्पणी करें।
18 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण • भूमिका। • व्यक्तिगत और सार्वजनिक मूल्यों में एक लोकसेवक के समक्ष आने वाली अनिर्णय की स्थिति को बताएँ। • यदि आपके व्यक्तिगत मूल्य, सार्वजनिक मूल्यों से टकराते हैं तो आप क्या कार्रवाई करेंगे? वर्णन करें। • निष्कर्ष। |
शासन की प्रतिष्ठा और सफलता सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओं, विशेषकर लोकसेवकों के आचरण तथा उनके आचरण के संदर्भ में जनता के विश्वास पर निर्भर करती है। अतः यह इस रूप में मौलिक है कि सार्वजनिक अधिकारी सभी के लिये न्यायपूर्ण और निष्पक्ष कार्य करें। किंतु कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि लोकसेवक के व्यक्तिगत मूल्य, सार्वजनिक मूल्यों पर हावी हो जाएँ।
उदाहरण के तौर पर हम एक सिविल सेवक के व्यक्तिगत मूल्यों को निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैंः
धार्मिक मूल्यः एक लोकसेवक द्वारा किसी विशिष्ट धर्म को मानना और उसकी शिक्षाओं द्वारा अत्यधिक प्रभावित होना।
राजनैतिक मूल्यः किसी विशिष्ट विचारधारा से गहरे रूप से प्रभावित होना या किसी दल के प्रति घनिष्ठता।
सांस्कृतिक मूल्यः इसमें उस विशिष्ट समाज, जिससे वह संबंधित है, के तौर-तरीके, रहन-सहन, भाषा, खान-पान आदि उसके मूल्यों से गहरे रूप में जुड़े होते हैं।
अन्यः जैसे गरीबों के प्रति संवेदनशीलता और करुणा का भाव (यदि वह स्वयं गरीबी से उठकर आया हो)।
जब एक सिविल सेवक सार्वजनिक जीवन में कार्य करता है तो उपर्युक्त व्यक्तिगत मूल्य निश्चित ही उसे प्रभावित करेंगे। ऐसी स्थिति में निर्णयन प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
यदि मेरे समक्ष टकराव की ऐसी स्थिति आती है, तो मैं सार्वजनिक मूल्यों को अधिक महत्त्व दूंगा। उदाहरणस्वरूप यदि मेरे धार्मिक मूल्य किसी अन्य के धार्मिक मूल्यों से टकराते हैं और अनिर्णय की स्थिति उत्पन्न होती है, तो मैं संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्षता के मूल्य को महत्त्व दूंगा।
इसी प्रकार यदि मेरे राजनैतिक मूल्यों की भिन्नता के कारण किसी कार्य को करने में असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है तो मैं संविधान के प्रावधान, एक सिविल सेवक के कोड ऑफ कन्डक्ट और कानूनों, नियमों, विनियमों के प्रावधानों के अनुसार कार्य संपन्न करूंगा।
यद्यपि अनेक मामलों में व्यक्तिगत मूल्य, जैसे- करुणा, सहानुभूति आदि सिविल सेवक को बेहतर कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं किंतु यदि ये संवैधानिक, कानूनों, नियमों, विनियमों आदि के विरुद्ध हैं, जैसे- लोकसेवक में गरीबों के प्रति संवेदनशीलता किंतु उन्होंने गैरकानूनी रूप से सार्वजनिक स्थल पर कब्जा कर रखा है तो उसे अपने व्यक्तिगत मूल्यों से परे कार्य करना आवश्यक होगा। इस प्रकार एक लोकसेवक को अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में संतुलन बनाकर रखना चाहिये तभी वह अपने कर्त्तव्यों का बेहतर ढंग निष्पादन कर सकेगा।