वर्ष 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण मात्र द्विपक्षीय संबंधों में तनावों का परिणाम न होकर, चीन की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से त्यक्तता, अलगाव एवं निराशा की भी उपज थी। टिप्पणी कीजिये।
17 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • संक्षिप्त भूमिका। • स्वतंत्रता के बाद भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि। • अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में चीन का अलगाव। • निष्कर्ष। |
भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद आज़ादी के समय से ही चला आ रहा था। 1962 का भारत-चीन युद्ध मूलतः सीमा युद्ध था, परंतु इसके लिये कई अन्य कारण भी ज़िम्मेदार थे। इस युद्ध का संबंध अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन की स्थिति से भी है।
अमेरिका ने फारमोसा (ताइवान) को वैध चीन के रूप में मान्यता दी तथा कम्युनिस्ट चीन की सरकार को मान्यता देने से इंकार कर दिया। इस कारण से चीन का संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व अधिक मुश्किल हो गया।
कोरियाई युद्ध में चीन ने दक्षिण कोरिया का पक्ष लिया था, इस युद्ध में अमेरिका के हाथों चीन और दक्षिण कोरिया की संयुक्त सेना को हार का सामना करना पड़ा था।
चीन ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ (पूर्व में चीन का हिस्सा रहे भू-भागों का एकीकरण) अपनाई, जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीव्र विरोध हुआ।
स्टालिन की मृत्यु के बाद रूस-चीन संबंधों में खटास बढ़ती जा रही थी, इससे चीन बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया था।
एशिया तथा अफ्रीका के नव-स्वतंत्र राष्ट्र चीन की साम्यवादी विचारधारा के विरुद्ध गुट निरपेक्ष आंदोलन के प्रति अधिक आकर्षित थे।
जहाँ प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व में भारत अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था, वहीं माओ की राजनीतिक शक्ति एवं जनसमर्थन घट रहा था।
चीन ने दलाई लामा एवं अन्य तिब्बतियों को भारत में शरण देने की घटना को पंचशील संधि का उल्लंघन माना तथा इसका कड़ा विरोध किया।
भारत और चीन बिगड़ते संबंधों को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने में विफल रहे थे।
अतः उपरोक्त कारणों के संयुक्त प्रभाव से चीन ने पर 1962 में हमला कर दिया। इस युद्ध में भारत की हार ने रणनीतिक तथा कूटनीतिक विफलता को उजागर किया तथा गुट-निरपेक्ष आंदोलन को भी असफल साबित किया। भारत-चीन संबंधों में अविश्वास की स्थिति अब भी दोनों राष्ट्रों के द्विपक्षीय संबंध को प्रभावित करती है तथा सीमा विवाद को अब भी सुलझाया जाना बाकी है।