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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या कारण है कि वर्तमान में चीनी उद्योग उत्तर से दक्षिण भारत की ओर खिसक रहा है? भारत में चीनी उद्योग से संबंधित समस्याओं की चर्चा करें।

    15 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • भूमिका।

    • दक्षिण भारत में चीनी उद्योग की संभावनाएँ।

    • उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में चीनी उद्योग की धीमी प्रगति के कारण।

    • भारत में चीनी उद्योग से संबंधित समस्याएँ।

    भारत, विश्व में गन्ना और गन्ना उत्पादों का अग्रणी उत्पादक देश है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में चीनी उद्योग की शुरुआत उत्तर प्रदेश और बिहार में नील की मांग में कमी आने के बाद की गई है। चीनी उद्योग के लिये मूलभूत कच्चा माल गन्ना है, जिसकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    • गन्ने को लंबे समय तक भंडारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उस स्थिति में यह सुक्रोज़ का क्षय कर देता है।
    • इसका परिवहन लंबी दूरी तक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी परिवहन लागत अधिक होती है और इसके सूखने की भी आशंका रहती है।
    • इन कारणों से चीनी मिलों की स्थापना गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के आसपास ही की जाती है। इसके अतिरिक्त गन्ने की कटाई का एक विशेष समय होता है।
    • दक्षिण भारत में मुख्यतः महाराष्ट्र में सहकारी क्षेत्र के अंतर्गत चीनी मिलों एवं गन्ने की खेती का प्रबंधन किया जाता है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी सीमित मात्रा में गन्ने की खेती की जाती है।
    • दक्षिण भारत में चीनी उद्योग की संभावनाएँ:
      • उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में उच्च उत्पादकता।
      • दक्षिण भारत में उत्पादित गन्ने में सुकोज़ की अधिक मात्रा पाई जाती है।
      • उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में पेराई सत्र अधिक लंबा होता है।
    • उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में चीनी उद्योग की धीमी प्रगति के कारण:
      • इस क्षेत्र में नकदी फसल के लिये अधिक विकल्प हैं इसलिये किसान कपास, मूंगफली, नारियल, तंबाकू इत्यादि में अधिक रूचि रखते हैं।
      • महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पानी की कमी के कारण उच्च सिंचाई दरें।
      • उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में गन्ने की खेती कम विस्तृत क्षेत्रों में होती है।

    भारत में चीनी उद्योग से संबंधित समस्याएँ:

    • उचित एवं लाभकारी मूल्य के निर्धारण से संबंधित समस्याएँ, साथ ही किसानों को दी जाने वाली अतिरिक्त सहायता को लेकर केंद्र और राज्यों के मध्य समन्वय का अभाव।
    • अधिकांश चीनी मिलों की पेराई क्षमता सीमित है। पुरानी मशीनरी, वसूली की न्यून दर, उत्पादन की उच्च लागत आदि लाभ को कम कर देते हैं।
    • बिना किसी नियंत्रण के गुड़/खांडसारी उद्योग द्वारा गन्ना के एक-तिहाई भाग का उपयोग किया जाता है, जो चीनी मिलों में गन्ने की कमी का कारण बनता है।
    • गन्ने की पेराई अवधि 4-6 महीने की होती है, अतः इसकी प्रकृति मौसमी है, जो श्रमिकों के लिये वित्तीय समस्याएँ उत्पन्न करती है।

    भारत में इस उद्योग पर निर्भर एक बड़ी जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए सरकार, किसानों और गन्ना मिल मालिकों के मध्य समन्वय होना चाहिये।

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