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प्रश्न :
धर्म और नैतिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उचित उदाहरण के साथ कथन की समीक्षा करें।
13 Jan, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• संक्षिप्त भूमिका।
• पूर्व एवं पाश्चात्य दर्शन में धर्म का अर्थ।
• धर्म एवं नैतिकता में संबंध।
• निष्कर्ष।
‘जहाँ धर्म होता है, वहीं नैतिकता होती है’ यह विषय हमेशा से विचारकों के मध्य विवाद का बिंदु रहा है। धर्म और नैतिकता के मध्य अंतर्संबंध को समझने के लिये हमें धर्म का अर्थ समझना होगा। भारतीय दर्शन में धर्म का अर्थ होता है ‘धारण करने योग्य’ या ‘स्वकर्त्तव्यपालन’। अगर समाज में प्रत्येक व्यक्ति जीवनपर्यंत धर्म का यही अर्थ लेकर चलता है तो वह अपने नैतिक कर्त्तव्यों की पूर्ति करेगा। ऐसी स्थिति में धर्म और नैतिकता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू बन जाएँगे।
किंतु यदि धर्म को ‘रिलिज़न’ या ‘मज़हब’ के अर्थ में लिया जाए, जहाँ यह एक अलौकिक सत्ता के प्रति आस्था रखती है, तो धर्म एवं नैतिकता के मध्य एक संयोग का संबंध होगा जिसमे चार तरह की स्थितियाँ सामने आती हैं-
धर्म एवं नैतिकता साथ-साथ: महात्मा गाँधी, गुरु नानक इत्यादि।
धर्म उपस्थित किंतु नैतिकता अनुपस्थित: ISIS की शासन प्रणाली, धार्मिक कार्यों में बलि चढ़ाना इत्यादि।
धर्म अनुपस्थित किंतु नैतिकता उपस्थित: भगत सिंह का नैतिक दृष्टिकोण या कार्ल मार्क्स का जीवन दर्शन।
धर्म एवं नैतिकता दोनों ही अनुपस्थित: आपराधिक प्रवृत्ति के लोग, बलात्कारी व्यक्ति का कृत्य इत्यादि।
अत: उपरोक्त स्थितियों में धर्म और नैतिकता को हम एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं कह सकते हैं क्योंकि नैतिकता, धर्म के सापेक्ष (जैन धर्म में अहिंसा) और धर्म से निरपेक्ष (किसी नास्तिक व्यक्ति में दया एवं करुणा का भाव होना) भी हो सकती है।
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