‘नेपोलियन के नेतृत्व में जहां फ्रांसीसियों ने विश्व में अपनी शक्ति का लोहा मनवाया वहीं भारत में फ्रांसीसियों की सभी योजनाएं धूल-धुसरित हो गई’ कथन का विश्लेष्ण करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका।
• भारत में फ्रॉसीसियों की विफलता के कारण।
• निष्कर्ष।
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नेपोलियन के नेतृत्व में फ्रॉसीसियों ने संपूर्ण विश्व में अपनी शक्ति का लोहा मनवाया तथा डूप्ले के नेतृत्व में भी वे साम्राज्य विस्तार की ओर तीव्र गति से बढ़ रहे थे। किंतु 1758 ई. में काउंट डी लाली को गवर्नर बनाकर भेजे जाने के बाद सभी योजनाएं विफल हो गई।
डूप्ले ने लगातार संघर्ष तथा अपनी कूटनीतिक सूझ-बूझ द्वारा भारत में फ्रॉसीसियों के अनुकूल जिस वातावरण का निर्माण किया था, उसे उसके देश के ही अयोग्य अधिकारियों ने प्रतिकूल बना दिया।
भारत में फ्रॉसीसियों की पराजय के लिये निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे-
- अंग्रेजी व्यापारिक तथा आर्थिक दृष्टि से प्रांसीसियों की तुलना में सुदृढ़ थे। फ्रॉसीसियों की तुलना में अंग्रेजों ने 1756 ई. के मध्य लगभग ढ़ाई गुना अधिक व्यापार किया। युद्ध होने की स्थिति में भी अंग्रेजों ने अपना पूरा ध्यान व्यापार पर केंद्रित रखा जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर नहीं हुई।
- फ्रांसीसी कंपनी एक सरकारी संस्था थी जबकि ब्रिटिश कंपनी एक प्राइवेट कंपनी थी। फ्रांसीसी कंपनी को ब्याज एक निश्चित दर पर प्राप्त होता था, इसलिये वह कंपनी के कार्यों में अधिक रुचि नहीं लेती थी।
- फ्रांसीसी कंपनी पर सरकार की नीतियों का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता था जबकि अंग्रेज कंपनी का स्वरूप निजी होने के कारण उस पर निर्णयों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था।
- बंगाल विजय से प्राप्त धन से अंग्रेजों की प्रतिष्ठा बढ़ी, साथ ही बंगाल पर अपार धन तथा जनशक्ति भी प्राप्त हुई।
- डूप्ले की फ्रॉस वापसी के कारण फ्रॉसीसियों का वर्चस्व समाप्त होना तय हो गया क्योंकि भारतीय परिवेश की जितनी जानकारी उसे थी उतनी काउण्ट डी लाली को नहीं थी।
- काउण्ट डी लाली एक क्रोधी, अदूरदर्शी तथा कटुभाषी व्यक्ति था, इसलिये उसके नेतृत्व में फ्रॉसीसी अधिकारियों ने पूर्ण निष्ठा नहीं दिखाई।
- अंग्रेजों में परस्पर सहयोग की भावना विद्यमान थी, जबकि फ़्रांसीसियों के नेतृत्व का मुद्दा और एकता का अभाव अंग्रेजों के लिये लाभदायक सिद्ध हुआ।