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प्रश्न :
निम्नलिखित गद्यांश की ससंदर्भ व्याख्या करते हुए इसके रचनात्मक सौंदर्य का उद्घाटन कीजिये: (लगभग 150 शब्दों में)
लक्षण कह रहे हैं कि बहुत जल्द हमारे वर्ग की हस्ती मिट जाने वाली है। मैं उस दिन का स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ। ईश्वर वह दिन जल्द लाए। वह हमारे उद्धार का दिन होगा। हम परिस्थितियों के शिकार बने हुए हैं। यह परिस्थिति ही हमारा सर्वनाश कर रही है और जब तक संपत्ति की यह बेड़ी हमारे पैरों से न निकलेगी, तब तक यह अभिशाप हमारे सिर पर मंडराता रहेगा, हम मानवता का वह पद न पा सकेंगे, जिस पर पहुँचना ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है।
28 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
संदर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी उपन्यास की दशा-दिशा परिवर्तित करने वाले मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित ‘गोदान’ से उद्धृत है।
प्रसंग: रायसाहब, होरी को आने वाले समय में होने वाले परिवर्त्तनों की संभावनाओं से अवगत करा रहे हैं।
व्याख्या: रायसाहब परिवर्तनों की संभावना व्यक्त करते हुए होरी से कहते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब जमींदार वर्ग का नामोनिशान मिट जाएगा, स्वयं को इस परिवर्तन हेतु उत्सुक प्रदर्शित करते हुए वे कहते हैं कि वह स्वयं उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनकी नज़रों में यह सबके उद्धार का दिन होगा। जब तक ज़मींदार वर्ग अपनी संपत्ति के मोह से दूर नहीं होता, तब तक यह संपत्ति उसे बंधन में बांधे रखेगी, तब तक मानवता से हमारी (संपन्न वर्ग) दूरी बनी रहेगी, वस्तुत: इस दिन को प्राप्त करना हमारा सर्वोच्च लक्ष्य भी है।
विशेष:
- समाजवाद की आहट गद्यांश में उभकर साफ-साफ सुनाई देती है।
- प्रेमचंद तत्कालीन विमर्शों और विचारधाराओं के प्रति सजग चिंतक व्यक्तित्व रखते हैं, जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है।
- इन पंक्तियों में रायसाहब के माध्यम से ज़मींदार वर्ग का छद्म रूप उभरकर सामने आया है जिसकी कथनी और करनी में फर्क है।
- प्रेमचंद का द्रष्टा रूप इन पंक्तियों में देखा जा सकता है जो भविष्य के भारत का संकेत इन पंक्तियों में दे रहे हैं।
- भाषा आम हिंदुस्तानी है जिसमें तत्सम-तद्भव शब्दों के साथ ‘हस्ती’, ‘शिकार’ जैसे विदेशज शब्द भी शामिल हैं जो हिंदुस्तानी के भीतर रच बस गए हैं।
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